तेल की बदलती अर्थव्यवस्था
रूस को प्रतिबंधित करने की कोशिश में पश्चिम के धनी देश अपने लिए तेल और गैस के नए स्रोत ढूंढ रहे हैँ। नतीजा, तेल उत्पादक और गैस सप्लायर देशों से नए सौदे करने की लगी होड़ है। लेकिन अगर इन देशों के ज्यादातर उत्पाद को धनी देशों ने खरीद लिया, तो गरीब देशों की मुश्किलें और बढ़ जाएंगी।
यूक्रेन पर रूस के हमले का सबसे असर जिस क्षेत्र पर पड़ा है, वो कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस का विश्व बाजार है। रूस को प्रतिबंधित करने की कोशिश में पश्चिम के धनी देश अपने लिए तेल और गैस के नए स्रोत ढूंढ रहे हैँ। नतीजा, तेल उत्पादक और गैस सप्लायर देशों से नए सौदे करने की लगी होड़ है। इस बीच जानकार चेतावनी दे रहे हैं कि अगर इन देशों के ज्यादातर उत्पाद को धनी देशों ने खरीद लिया, तो गरीब देशों की मुश्किलें और बढ़ जाएंगी। फिलहाल, ताजा खबर यह है कि यूरोप की सबसे ताकतवर अर्थव्यवस्था जर्मनी के वित्त मंत्री रॉबर्ट हाबेक हाल में कतर और संयुक्त अरब अमीरात के दौरे पर गए। कतर में उन्होंने लंबे समय तक ऊर्जा आपूर्ति को लेकर एक समझौता किया। उसके पहले ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब के दौरे पर गए। वहां उन्होंने सऊदी को कुछ वक्त के लिए वैश्विक बाजार में तेल की आपूर्ति बढ़ाने के लिए राजी करने की कोशिश की। वहीं इटली के विदेश मंत्री भी पहले अल्जीरिया और फिर कतर के दौरे पर गए, जहां उन्होंने ऊर्जा आपूर्ति संबंधी बातचीत की। इटली की निगाह अजरबैजान, ट्यूनीशिया और लीबिया पर भी है।
साफ है कि रूस के यूक्रेन पर हमला करने के बाद से कई वैश्विक समीकरण बदल गए हैं। रूस से लंबे समय से खूब तेल और गैस खरीदने वाले तमाम यूरोपीय देश अब रूस से निर्भरता घटाना चाहते हैं। रूसी तेल और गैस पर यूरोप की निर्भरता कुछ ऐसी रही है कि जर्मनी अपनी कुल जरूरत की आधे से ज्यादा नेचुरल गैस, कुल जरूरत का आधा कोयला, और कुल जरूरत का एक-तिहाई तेल रूस से आयात करता है। रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद अमेरिका ने रूसी तेल खरीदने पर पाबंदी लगा दी। अन्य यूरोपीय देशों ने भी तमाम पाबंदियों का एलान किया। फिर भी युद्ध शुरू होने के बाद से यूरोपीय संघ के देश तेल, नेचुरल गैस और कोयले के लिए रूस को 13.3 अरब यूरो ट्रांसफर कर चुके हैं। एक स्टडी के मुताबिक अभी यूरोप से सिर्फ तेल के लिए ही रूस को रोजाना 21 अरब रुपये से ज्यादा जा रहे हैं। अब मकसद रूस को इस धन से वंचित करना है। लेकिन इस कोशिश में इन देशों को दूसरे देशों का रुख करना पड़ रहा है। इससे पेट्रोलिय की पूरी विश्व अर्थव्यवस्था ही बदलती नजर आ रही है।