अंतर्राष्ट्रीय

नासा के वैज्ञानिकों ने कर दिखाया, चांद से लाई गई मिट्टी में उगाया पौधा

न्यूयॉर्क। वैज्ञानिकों ने पहली बार चांद से लाई मिट्टी में पौधे उगाने में कामयाबी हासिल की है। कम्युनिकेशंस बायोलॉजी नामक पत्रिका में छपे एक शोध में बताया गया है कि अपोलो अभियान के दौरान अंतरिक्ष यात्री जो मिट्टी लाए थे, उसमें पौधे उगाने में सफलता मिली है। चांद से ये मिट्टी कुछ समय पहले नासा के अपोलो अंतरिक्ष यात्री अपने साथ लेकर आए थे। अब माना जा रहा है कि वैज्ञानिकों का अगला लक्ष्य चांद पर पौधा उगाना होगा।

पहली बार वैज्ञानिकों ने नासा के अपोलो अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा एकत्र किए गए चंद्रमा से मिट्टी में पौधे उगाए गए हैं। हालांकि शुरुआत में शोधकर्ताओं को यह मालूम नहीं था कि ठोस चंद्रमा की मिट्टी में कुछ भी उगेगा या नहीं और वे यह देखना चाहता था कि चांद पर खोजकर्ताओं की अगली पीढ़ी द्वारा इसका उपयोग किया जा सकता है या नहीं। हालांकि इन नतीजों ने उन्हें चौंका दिया।
फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी के खाद्य और कृषि विज्ञान संस्थान के रॉबर्ट फेरल ने कहा, पौधे वास्तव में चंद्र के सामान पर उगे हैं। क्या आप मेरे साथ मजाक कर रहे हैं? फेरल और उनके सहयोगियों ने अपोलो 11 के नील आर्मस्ट्रांग और बज एल्ड्रिन और अन्य मूनवॉकर्स द्वारा लाई गई चांद की मिट्टी में अरबिडोप्सिस का बीज लगाया। इसमें सारे बीज अंकुरित हो गए।
फेरल ने आगे कहा, ‘अपोलो चंद्र रेजोलिथ में उगाए गए पौधे ट्रांसक्रिप्टोम पेश करते हैं, जो चांद को लेकर किए जा रहे तमाम रिसर्च को एक नई सकारात्म दिशा दे रहे हैं। इससे साबित होता है कि पौधे चांद की मिट्टी में सफलतापूर्वक अंकुरित और विकसित हो सकते हैं।’

चांद की मिट्टी को लूनर रेजोलिथ कहा जाता है, जो पृथ्वी पर पाई जाने वाली मिट्टी से मौलिक रूप से अलग होता है। अपोलो 11, 12 और 17 मिशनों के दौरान चांद से मिट्टी लाई गई थी, जिनमें ये पौधे लगाए गए थे।
नकारात्मक पक्ष यह रहा कि पहले हफ्ते के बाद, चांद की मिट्टी की खुरदुरापन और अन्य तत्वों ने छोटे, फूलों वाले खरपतवारों पर इतना जोर दिया कि वे धरती से नकली चंद्रमा की मिट्टी में लगाए गए पौधों की तुलना में अधिक धीरे-धीरे बढ़े। ज्यादातर चंद्रमा के पौधे खत्म हो गए। परिणाम कम्युनिकेशन बॉयोलॉजी में गुरुवार को प्रकाशित किए गए थे।
अपोलो के छह कर्मचारियों द्वारा सिर्फ 842 पाउंड (382 किलोग्राम) चंद्रमा की चट्टानें और मिट्टी वापस लाई गई थी। चांद से लौटने के बाद ह्यूस्टन में अपोलो अंतरिक्ष यात्रियों के साथ क्वारंटाइन के तहत पौधों पर सबसे पहले चंद्रमा की धूल छिडक़ी गई थी।
अधिकांश चंद्र छिद्र बंद ही रहे, जिससे शोधकर्ताओं को पृथ्वी पर ज्वालामुखीय राख से बनी नकली मिट्टी के साथ प्रयोग करने के लिए मजबूर होना पड़ा। नासा ने आखिरकार पिछले साल की शुरुआत में फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं को 12 ग्राम दिया, और लंबे समय से प्रतीक्षित रोपण पिछले मई में एक प्रयोगशाला में हुआ।
नासा ने कहा कि इस तरह के प्रयोग का समय आखिरकार सही था, अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी कुछ वर्षों में अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर वापस लाना चाहती है।फ्लोरिडा के वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि वे इस साल के अंत में चांद से लाई मिट्टी को रीसायकल करेंगे, संभवत: अन्य वनस्पतियों पर जाने से पहले अधिक थाले क्रेस का रोपण करेंगे।

Aanand Dubey / Sanjay Dhiman

superbharatnews@gmail.com, Mobile No. +91 7895558600, 7505953573

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *