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अपने हित की बात

पश्चिमी देशों की रूस के कच्चे तेल की कीमत पर सीमा लगाने की योजना है। इसके तहत वे देश यह तय करेंगे कि रूसी तेल किस कीमत पर बिके। मगर भारत ने साफ किया है कि वह ये शर्त नहीं मानने जा रहा है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-20 शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए वहां जुटे नेताओं को उचित आगाह किया कि वे दूसरे देशों की ऊर्जा सुरक्षा को बाधित करने वाले कदम ना उठाएं। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट रूप से नहीं कहा कि वे ये बात किस संदर्भ में कह रहे हैं, लेकिन वहां मौजूद तमाम लोगों को इसका मतलब साफ समझ में आया। मोदी का इशारा पश्चिमी देशों की अगले पांच दिसंबर से रूस के कच्चे तेल की कीमत पर सीमा लगाने की योजना है। इसके तहत वे देश यह तय करेंगे कि रूसी तेल किस कीमत पर बिके। जो देश उस कीमत पर खरीदेंगे, उन्हें पश्चिमी प्रतिबंधों से छूट रहेगी। लेकिन जो देश रूस की तरफ से तय कीमत पर तेल खरीदेंगे, उन्हें प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। मगर भारत पश्चिम की यह शर्त नहीं मानने जा रहा है, यह संकेत वह पहले भी दे चुका है। कुछ रोज पहले अमेरिका की वित्त मंत्री जेनेट येलेन दिल्ली आई थीं, तो उनकी टिप्पणी से साफ हुआ कि भारत ने उनके देश की ये शर्त दो टूक ठुकरा दी है।

लाचारी के भाव के साथ येलेन ने नई दिल्ली में कहा कि भारत जिस कीमत पर चाहे, वह तेल खरीद सकता है, लेकिन उसे पश्चिमी बीमा कंपनियों, मालवहन और अन्य सुविधाएं नहीं मिलेंगी। तो अब जो शिखर सम्मेलन खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करने के नाम पर हो रहा है, वहां मोदी ने दो टूक कहा है कि पश्चिमी देश ऊर्जा सुरक्षा को अपने नजरिए से देखने का तरीका छोड़ें। भारत की ऊर्जा सुरक्षा रूस से तेल खरीदने में है- वह पिछले नौ महीनों से यही कर रहा है और आगे भी करता रहेगा। कहा जा सकता है कि जी-20 के विश्व मंच का उपयोग मोदी ने भारतीय हित को व्यक्त करने के लिए किया है। अमेरिका के नजरिए से विश्व व्यवस्था को देखने की भारी कीमत इस समय यूरोपीय देश चुका रहे हैँ। हाल में उनमें भी इस बात का अहसास जगा दिखता है। वैसे मौके पर भारत जैसे अपने हित की उपेक्षा करें, यह कतई उचित नहीं है। इसलिए विकासशील देशों के अंदर प्रधानमंत्री के इस हस्तक्षेप का स्वागत किया जाएगा।

Aanand Dubey / Sanjay Dhiman

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