तिवारी हत्याकांड से वांछित चल रहे मुख्य आरोपी नही हुआ गिरफ्तार, पुलिस पर उठ रहे कई सवाल
सुलतानपुर। बहुचर्चित डॉ घनश्याम तिवारी हत्याकांड में एक हफ्ते बाद भी पुलिस वांछित चल रहे मुख्य आरोपी अजय नारायण सिंह को नहीं कर सकी गिरफ्तार, मामले की तफ्तीश कर रहे नवागत कोतवाल श्रीराम पाण्डेय एवं एसओजी टीम प्रभारी उपेंद्र सिंह की भूमिका पर उठ रहा सवाल, इन जिम्मेदारो के सारे दांव-पेंच दिख रहे फेल, अब इन अफसरों के जरिये जान बूझकर अपने दायित्वों से हटकर आरोपियों को दिया जा रहा संरक्षण या फिर नृसंश हत्या के आरोपियों के पैतरे के आगे सचमुच है पुलिस नतमस्तक, उठ रहे कई सवाल, पुलिस की करतूत के चलते लगातार तूल पकड़ रहा मामला।
जिले में हो रहे अपराधों पर नियंत्रण लगाने में सहयोग करने के लिए विशेष टीम का गठन कर एसओजी प्रभारी पद की जिस उपेंद्र सिंह को दी गई है जिम्मेदारी,उनकी भी भूमिका सवालों के घेरे में,सूत्रों के मुताबिक उपेंद्र सिंह के कार्य व्यवहार के चलते मुख्य आरोपी अजय नारायण सिंह को मिल रहा संरक्षण, एसओजी प्रभारी उपेंद्र सिंह के जरिये आरोपी अजय नारायण सिंह से याराना निभाने की बात आ रही सामने,मिली जानकारी के मुताबिक एसओजी प्रभारी पद पर आने के पहले उपेंद्र सिंह की पयागीपुर में चौकी प्रभारी पद पर रही तैनाती,तैनाती के दौरान हत्याकांड के मुख्यारोपी अजय नारायण सिंह व अन्य गलत कार्यो में लिप्त ऐसे लोगो से उपेंद्र सिंह का बताया जा रहा गहरा नाता,आरोपियों से उपेंद्र सिंह की बताई जा रही पुरानी जान-पहचान,इन्हीं सम्बन्धो के चलते याराना निभाना मानी जा रही आरोपियो के गिरफ्तार न होने की मुख्य वजह,क्योंकि जिनके जिम्मे है आरोपियों की गिरफ्तारी की जिम्मेदारी,जब वही निभा रहे यारी तो कैसे हो पाएगी गिरफ्तारी,महज खानापूर्ति मानी जा रही हत्याकांड में जेल भेजे गये वृद्ध जगदीश नारायण सिंह की गिरफ्तारी,शेष आरोपियों को तफ्तीश प्रभावित करने का मिल रहा पूरा मौका,धन-बल व राजनैतिक पहुँच से माहिर माना जाता है आरोपियों का परिवार
सूत्रों के मुताबिक सुलतानपुर शहर से सटे नारायणपुर समेत अन्य इलाकों में जमीन खरीदने वालो को शुरू से लेकर अंत तक कुछ प्रभावशाली लोगों को देना पड़ता है गुंडा-टैक्स,हर क्षेत्र में अपना-अपना प्रभाव जमाये बैठे भू-माफियाओ को अपने अरमान लेकर शहर के करीब बसने आये भोले-भाले लोगो को देना पड़ता है गुंडा-टैक्स,सूत्रों के मुताबिक 80 रुपये से लेकर 100 रुपये प्रति वर्गफिट या विस्वा पीछे एक लाख रुपये देना पड़ता है गुंडा-टैक्स,इन माफियाओं की डिमांड न पूरी करने वालो को चुकानी पड़ती है बड़ी कीमत,कभी बेज्जत होकर तो कभी जान गवांकर चुकानी पड़ती है कीमत,कभी बेवजह ही जमीनों पर विवाद पैदा करके तो कभी अनेक तरीको से डराकर गुंडा टैक्स देने के लिए किया जाता है।
मजबूर,ऐसे मामलों में पुलिस प्रशासन भी प्रभावशाली लोगों के ही इशारे पर करती है काम और उनके जरिये अपना हिस्सा लेने की चर्चाए रहती है आम,मजबूरन कहीं से न्याय मिलने की उम्मीद न दिखने की वजह से शहर के नए बशिंदा बनने आये लोग माफियाओं के आगे हो जाते है बेवश और बिना कहीं सांस लिए पूरी कर देते है उनकी डिमांड,ऐसे ही कारनामे के शिकार बताए जा रहे डॉ घनश्याम तिवारी,अब भी डॉ घनश्याम तिवारी जैसे न जाने कितने पीड़ित है ऐसे माफियाओं के चपेट में,पर डरवश कोई नहीं बयां करते है अपना दर्द,ऐसे पीड़ित महज दबीं जुबान से कुछ लोगो के सामने सुनाते है अपनी दास्तां,कई लोग इन माफियाओं से कर्ज लेने के बाद इनके चंगुल में फंसने के बाद ब्याज पर ब्याज भरने के बावजूद नहीं हो पा रहे ऋणमुक्त,बैंक के नियमो से भी कई गुना जोखिम भरा है इनका नियम,चक्रवृद्धि ब्याज भी अदा कर ऐसे पीड़ित नहीं हो पाते है ऋणमुक्त,सूत्रों की मानें तो बड़े स्तर पर नारायणपुर क्षेत्र में फलफूल रहा सूदखोरी का धंधा,पीड़ित आखिर किसके सामने सुनाए अपना दर्द,कहीं न कहीं से सब आ जाते है माफियाओं के प्रभाव में,आम जनता का पुलिस-प्रशासन से उठ चुका है भरोसा,गिने-चुने महज कुछ मामलों को छोड़कर किसी मामले मे नहीं होती अपेक्षित कार्यवाही।
बीते 23 सितम्बर की शाम कोतवाली नगर क्षेत्र में डॉ घनश्याम तिवारी की हुई थी नृसंश हत्या,काफी पिटाई के बाद ड्रिल मशीन से शरीर मे छेद करने एवं उसके बाद ई-रिक्शा पर लदवाकर डॉक्टर के घर तक पहुँचाने की अति दुस्साहसिक वारदात को अंजाम देने की बात आई थी सामने,वारदात के बाद से जिले में है दहशत का माहौल,जिले के ऐसे घटिया माहौल में कोई भी स्वयं को नहीं समझ रहा सुरक्षित,मृतक डॉक्टर की पत्नी निशा तिवारी ने अजय नारायण सिंह के खिलाफ नामजद व दो अज्ञात के खिलाफ दर्ज कराई थी एफआईआर,फिलहाल बाद में निशा तिवारी के जरिये अपने पति की हत्या की वजह से परेशान होने के दौरान पुलिस के जरिये स्वतः संज्ञान लेकर उनके हस्ताक्षर कराकर मुकदमा दर्ज करने की बात आई सामने, निशा तिवारी के वायरल तहरीर के मुताबिक उनके पति ने मृत्यु के पहले दिये बयान में अजय नारायण सिंह,चंदन नारायण सिंह,जगदीश नारायण सिंह,गिरीश नारायण सिंह व विजय नारायण सिंह एवं चार अज्ञात लोगों की घटना में बताई है।
संलिप्तता, फिलहाल अभी तक पुलिस मात्र वृद्ध जगदीश सिंह को ही भेज सकी है जेल और मात्र अजय नारायण सिंह के खिलाफ ही पा सकी है गिरफ्तारी वारंट,सामने आये शेष आरोपियों की भूमिका को पुलिस प्राथमिक तौर भी अभी तक नहीं कर पाई है स्पष्ट,सामने आए आरोपियों के नाम में शामिल कुछ अपने को बता रहे निर्दोष,फिलहाल पुलिस अपनी जांच में किसकी क्या दिखाती है भूमिका,भविष्य में सारा खेल आएगा सामने,जिले के कई संगठन घटना के विरोध में लगातार उठा रहे आवाज,पर पुलिस सब कुछ कर रही नजरअंदाज।
डॉक्टर हत्याकांड की तरह ही अधिवक्ता आजाद अहमद हत्याकांड में भी मुख्य आरोपी हिस्ट्रीशीटर सिराज अहमद को कुछ विभागीय लोगो से संरक्षण मिलने की बात आई थी सामने, इसी संरक्षण की वजह से सारी विभागीय कार्यवाही की सूचना अपने अंजाम तक पहुँचने के पहले ही हो जाती थी लीक,शायद उसी का नतीजा रहा कि आज तक हिस्ट्रीशीटर सिराज तक नहीं पहुँच पाई पुलिस, सिराज की तरह ही इस हत्याकांड के आरोपियों से भी मानी जा रही कुछ जिम्मेदारो की गहरी दोस्ती,ऐसे जिम्मेदारो व इनके करीबियों की निकाली जाय कॉल डिटेल रिपोर्ट तो सच्चाई का हो सकता है खुलासा और सारी हकीकत आ सकती है सामने,जिले के बड़े अफसर भी ऐसे संदिग्ध अफसरों की बातों पर भरोसा करके बनते है उनकी साजिश का हिस्सा या फिर संज्ञान लेकर उठाते है प्रभावी कदम,उठ रहा सवाल,इस मामले में तत्कालीन कोतवाल राम आशीष उपाध्याय पर गिर चुकी है गाज पर अब भी ऐसे ही कई गिरा रहे विभाग की साख,देखना कब पड़ती है जिम्मेदारो की इन पर नजर।
गजब की है सुलतानपुर जिले की ढुलमुल पुलिस व्यवस्था,न जाने क्या योग्यता देखकर जिम्मेदार अफसर ऐसे लोगो के हाथों में दे देते है कमान,ऐसे जिम्मेदार पदों पर भेजे जाने वाले अफसरों की शारीरिक व मानसिक दक्षता को भी किया जाता है नजरअंदाज,जिले के अधिकतर थानेदार शारीरिक मापदंड के हिसाब से बिल्कुल है फेल,शायद किसी असल अपराधी से अकेले में सामना हो जाय तो उन्हें मार-गिराना तो दूर की बात ऐसे ढुलमुल अफसरो को स्वयं को ही बचाना होगा बड़ा मुश्किल, शारीरिक रूप से फिट नहीं है जिले के अधिकतर थानेदार व अन्य जिम्मेदार पद पर जमे अफसर ,महज सेटिंग-गेटिंग के बल पर मानी जा रही ऐसे अफसरों की तैनाती,उनके वास्तविक काम की नहीं बल्कि उनकी अन्य योग्यताओं के आधार पर बरकरार मानी जा रही उनकी तैनाती,लगभग डेढ़ वर्ष से न जाने क्या खूबी देखकर उपेंद्र सिंह को एसओजी प्रभारी पद की मिली है जिम्मेदारी,जबकि जिले के कई बड़े मामलो में फेल साबित है यह स्पेशल टीम,थानों पर भी लगातार कई महीनों से ऐसे ही बनी है अधिकतर थानेदारों की तैनाती,किसी अफसर की एक क्षेत्र में ज़्यादा समय तक न रहे तैनाती,जिससे कि वह क्षेत्र में अपना सम्बन्ध बनाकर अपने पद का न कर सके दुरुपयोग एवं बिना किसी से सम्बंध निभाये निष्पक्ष तरीके से अपने दायित्वों का कर सके निर्वहन ऐसे ही व्यवस्थाओ के मद्देनजर बनी है ट्रांसफर की व्यवस्था,पर इस जिले में एक पुलिस अफसर की एक जगह पर लम्बी तैनाती व्यवस्था पर उठा रहा सवाल,अपराधों पर नियंत्रण न होना एवं समय से सही खुलासा न होना माना जा रहा ऐसी ही लचर व्यवस्था का परिणाम, जिम्मेदार जल्द ले सकते है संज्ञान।