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श्रीलंका की दयनीय हालत

श्रीलंका की मदद करने से अंतरराष्ट्रीय समुदाय हिचक रहा है। इस बीच आर्थिक संकट गहराता चला गया है। तो अब श्रीलंका सरकार अपने सम्मान और सुरक्षा पर समझौते कर रही है।

श्रीलंका की हालत अब दयनीय दिखने लगी है। वह एक ऐसे देश के रूप में नजर आ रहा है, जिसकी मदद करने को कोई तैयार नहीं है। इस मामले में अपवाद सिर्फ भारत और चीन रहे हैं। चूंकि बाकी दुनिया ने उससे मुंह मोड़ लिया है, तो श्रीलंका सरकार को अब ऐसे कदम उठाने पड़ रहे हैं, जिन्हें पहले वह अपनी जनता की सुरक्षा और देश की स्वतंत्र विदेश नीति के खिलाफ समझती थी। इन फैसलों पर गौर कीजिए: गोटबया राजपक्षे सरकार ने पिछले दिनों श्रीलंकाई महिलाओं के विदेश जाकर काम करने के मामलों में पारिवारिक पृष्ठभूमि की जांच की शर्त हटा ली। जबकि यह जांच इसलिए की जाती थी कि ताकि महिलाए विदेश जाकर शोषण का शिकार ना हों। उसके बाद खबर आई कि श्रीलंका अमेरिकी संस्था मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन से मदद लेने को तैयार हो गया है, जबकि पहले वह इसे ठुकरा चुकी थी। तब श्रीलंका सरकार ने कहा था कि मदद की ये पेशकश असल में श्रीलंका को अमेरिका की इंडो-पैसिफिक में घसीटने की कोशिश है। अब उसने कतर की एक संस्था से मदद स्वीकार कर लेने का भी फैसला किया है।

कुछ ही समय पहले श्रीलंका सरकार ने इस संस्था के खातों को जाम कर दिया था। तब उस पर श्रीलंका में इस्लामी आतंकवाद को बढ़ावा देने का इल्जाम लगाया गया था। आरोप है कि 2019 में हुए ईस्टर बम धमाकों के मास्टरमाइंड जहरान हाशिम को कतर की इस संस्था से मदद मिली थी। इस संस्था का नाम पर्ल ऑफ यूनिटी है। दरअसल, श्रीलंका सरकार ने ईंधन की  सहायता पाने के लिए पश्चिम एशिया के कई देशों से संपर्क किया है। लेकिन इस कोशिश में उन्हें ज्यादा सफलता नहीं मिली। बीते हफ्ते खबर आई कि जापान ने अब उसे मदद ना देने का फैसला किया है।

कोलंबो स्थित जापानी राजदूत मिजुकोशी हिदेयेकी ने इस बारे में श्रीलंका सरकार को औपचारिक सूचना दी। उन्होंने कहा कि श्रीलंका में मौजूदा ‘कुप्रबंधन’ को देखते हुए उसे मदद देना जोखिम भरा हो गया है। इसलिए जापान अभी कोई मदद नहीं देगा। इस बीच आर्थिक संकट गहराता चला गया है। तो अब श्रीलंका सरकार अपने सम्मान और सुरक्षा पर समझौते कर रही है।

Aanand Dubey / Sanjay Dhiman

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