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पद यात्रा की संभावनाएं

कोई बड़ी वैचारिक राजनीति सकारात्मक एजेंडे से खड़ी होती है- यह एक इतिहास सिद्ध बात है। इसलिए भारत जोड़ो यात्रा की कामयाबी इस पर निर्भर है कि क्या कांग्रेस लोगों को कोई नया सपना दिखा पाती है।

राहुल गांधी का यह संकल्प प्रसंशनीय है कि सात सितंबर से प्रस्तावित ‘भारत जोड़ो’ यात्रा में कोई साथ ना भी दे, तब भी कन्याकुमारी से साढ़े तीन हजार किलोमीटर की इस पद यात्रा को पूरा जरूर करेंगे। हालांकि इस यात्रा की पूरी योजना कांग्रेस ने बनाई है, लेकिन यह भी एक सकारात्मक बात है कि उसने इसे दलगत राजनीति से अलग रखने का निर्णय लिया है। यात्रा से गैर-सरकारी संगठनों को जोडऩे की कोशिश को भी सही दिशा में माना जाएगा।

बहरहाल, कम से कम दो और शर्तें हैं, जिन्हें पूरा किए बिना संभवत: ये पद यात्रा अपने घोषित मकसद को हासिल नहीं कर पाएगी। इनमें पहली बात यह है कि पद यात्रा में शामिल होने वाले लोग पूरी यात्रा के दौरान सचमुच आम जन के बीच रहें- यानी ऐसा ना हो कि दिन भर पैदल चलने के बाद रात वे किसी सुविधाजनक होटल या स्थान पर गुजारने चले जाएं। राहुल गांधी ने कहा है कि ये यात्रा एक तपस्या है। तो उन्हें और उनके साथियों को तपस्या को उसके शब्दार्थ और भावार्थ दोनों में जीना होगा।

उन्होंने ऐसा किया, तो वे जनता से जुड़ाव बना सकेंगे और लोग उनकी बातों पर ध्यान देंगे। दूसरी बात दरअसल एक प्रश्न है। प्रश्न यह है कि जो संदेश वे लेकर जा रहे हैं, क्या उनमें देश और समाज निर्माण का कोई नया सपना है? क्या उनके पास ऐसा कोई संदेश है, जिससे लोगों में अपनी जिंदगी बेहतर होने की गुंजाइश दिखे? संविधान बचाओ या देश बचाओ जैसे नारे लोगों को बहुत नहीं जोड़ पाते हैं। कोई बड़ी वैचारिक राजनीति रक्षात्मक एजेंडे के साथ नहीं, बल्कि निर्माण के सकारात्मक एजेंडे से खड़ी होती है- यह एक इतिहास सिद्ध बात है। कांग्रेस ने आर्थिक बदहाली और बढ़ती गैर-बराबरी जैसे मुद्दों को उठाने का फैसला किया है। लेकिन लोग जानना चाहेंगे कि इन मसलों का कांग्रेस (या पदयात्रियों) के पास क्या समाधान है? अगर इन दोनों पहलुओं पर पदयात्री जनता से तादात्म्य बना पाए, तो इतनी लंबी और पांच महीनों में 12 राज्यों से गुजरने वाली इस यात्रा से वे अवश्य ही देश का माहौल बदलने में कामयाब रहेंगे।

Aanand Dubey / Sanjay Dhiman

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