क्या सुप्रीम कोर्ट दोषियों को जेल भेज सकता है
अजय दीक्षित
पिछले दिनों गुजरात में बिलकिस बानो के बलात्कारियों को जो आजीवन कैद की सजा काट रहे थे, अपने रैमिशन नियम के तहत माफ कर दिया और वे 15 अगस्त को जेल से रिहा हो गये । ये ग्यारह सजायाफ्ताओं ने 21 साल की गर्भवती बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया था । पन्द्रह साल जेल की सजा काटने के बाद आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष में इन्हें आम माफी दे दी गई क्योंकि इन्होंने पन्द्रह साल जेल में सजा काटते वक्त अच्छा आचरण (?) किया था, जैसा कि इन्हें माफीनामा में लिखा गया है । बाहर आकर उनका फूल मालाओं से स्वागत किया गया, इन्हें लड्डू खिलाये गये और एक महिला ने इनका रोली चावल से टीका भी किया ! 15 अगस्त को ही लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी ने नारी गरिमा की बात अपने भाषण में कही थी । कहा जा रहा है कि जिस कमेटी ने ग्यारह कैदियों की रिहाई की सिफारिश की है उसमें पांच सदस्य भाजपा के थे जिनमें दो वर्तमान में गुजरात विधानसभा में भाजपा से सदस्य भी हैं ।
यह भी दु:खद संयोग है कि इस घटना पर प्रधानमंत्री ने कोई वक्तव्य नहीं दिया है । वे बेवड़ी सरकार के मुखिया अरविन्द केजरीवाल को जन्मदिन की बधाई दे सकते हैं (दिल्ली सरकार को रेवड़ी और बेवड़ी सरकार स्वयं भाजपा कहती है) परन्तु गुजरात की भाजपा सरकार के फैसले पर मोदी जी मुखर नहीं हुए हैं । यह भी आश्चर्य है कि केन्द्रीय महिला आयोग ने भी चुप्पी साध ली है ! दुर्भाग्य से आज पूरी तरह सभी संवैधानिक संस्थाओं का राजनैतिकरण हो गया है । यह बात नहीं है कि पहले ऐसा नहीं हुआ था । तबके गृह मंत्री पी. चिदम्बरम ने अमित शाह को जेल भेजा था, अब की गृह मंत्री अमित शाह ने चिदम्बरम को जेल भेजा ।
असल में दुराचार के एक अपराधी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की कि वर्तमान नियमों के अन्तर्गत उसे अब मुक्ति मिलनी चाहिये जिस पर भाजपा की गुजरात सरकार ने ऐसा निर्णय लिया जबकि नियमानुसार गम्भीर अपराधियों को कोई छूट नहीं मिल सकती । शायद सुप्रीम कोर्ट ने मैकेनिकल तरीके से यह मामला गुजरात सरकार को भेज दिया जबकि बलात्कार के अपराधी का आवेदन सुप्रीम कोर्ट में ही खारिज हो जाना चाहिए था ।
भाजपा का कहना है कि ये 11 अपराधी ब्राह्मण हैं, सचरित्र हैं, इन्हें माफी मिलनी ही चाहिए थी । अब यह भाजपा की व्याख्या है कि बलात्कार का अपराधी अच्छे चरित्र वाला होता है ।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति को सजा में माफी देने या उसे कम करने का अधिकार है । राष्ट्रपति सजा को माफ कर सकता है, उसे स्थगित कर सकता है, उसे बढ़ा सकता है या कम कर सकता है । अनुच्छेद 161 के अन्तर्गत इसी प्रकार का अधिकार राज्य के राज्यपाल को है ।
इसी प्रकार सी.आर.पी.सी. के अन्तर्गत राज्य या केन्द्र सरकारों को बिना किसी शर्त के अपराधी की सजा को माफ या कम करने का अधिकार है । यद्यपि यह अधिकार सेक्शन 432 के अन्तर्गत है परन्तु 433 ए के अन्तर्गत यह भी प्रावधान है कि इस शक्ति का प्रयोग हत्या, बलात्कार जैसे गम्भीर अपराध के अपराधियों पर लागू नहीं हो सकता । कोई भी छूट 14 साल की सजा काटने के बाद ही सुनी जा सकती है ।
सल में बिलकिस बानो का केस गुजरात से महाराष्ट्र ट्रान्सफर हुआ था । महाराष्ट्र के जज ने जिसने इन अपराधियों को सजा दी थी उनका कहना है कि गुजरात सरकार को उनसे इस सम्बन्ध में सलाह लेनी चाहिए थी । जस्टिस उमेश सालवी (जिसने इनको सजा दी थी) का कहना है कि सरकारों को सजा माफ करने का अधिकार है परन्तु इसका प्रयोग बहुत सावधानी से कभी-कभी ही की किया जाना चाहिए । फिर इनकी माफी के बाद उनका स्वागत और जश्न तो पूरी तरह से न्याय व्यवस्था का मजाक उड़ाना है ।
असल में भाजपा पूरे देश में कमल खिलाना चाहती है । गोवा, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र आदि के बाद दिल्ली में यह प्रयोग असफल हो गया । बिहार में उल्टा पड़ गया । आखिर सत्ता सुख के लिए क्या बलात्कारियों का स्वागत होगा इस देश में ?