भारत में विदेशी शिक्षण संस्थानों की डिग्री
अजय दीक्षित
विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए भारत में परिसर स्थापित करने की दिशा में कदम उठाते हुए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने इसके लिए नियम जारी किए हैं। विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में परिसर स्थापित करने के लिए यूजीसी से मंजूरी लेनी होगी, वहीं उन्हें दाखिला प्रक्रिया तथा शुल्क ढांचा तय करने की छूट होगी। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के अनुसार विदेशी विश्वविद्यालय केवल परिसर में प्रत्यक्ष कक्षाओं के लिए पूर्णकालिक कार्यक्रम पेश कर सकते हैं, ऑनलाइन माध्यम या दूरस्थ शिक्षा माध्यम से नहीं।
प्रारंभ में इन्हें 10 साल के लिए मंजूरी दी जाएगी भारत में परिसर स्थापित करने वाले विदेशी विश्वविद्यालयों को अपनी स्वयं की प्रवेश प्रक्रिया तैयार करने की छूट होगी। ये संस्थान शुल्क ढांचा तय कर सकते हैं। इसमें एक श्रेणी उन संस्थानों की होगी जो सम्पूर्ण रूप से शीर्ष 500 संस्थानों की सूची। में होंगे और दूसरे गृह क्षेत्र में उत्कृष्ट दर्जे वाले संस्थान होंगे। विदेशी संस्थानों को भारत और विदेशों से शिक्षकों एवं कर्मचारियों की नियुक्ति की छूट होगी। विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में शिक्षा उपलब्ध कराने की अनुमति देना हालांकि एक बुरा कदम नहीं कहा जा सकता है, लेकिन इससे जुड़े कुछ चुनिंदा पहलुओं को भी विचारना होगा। सबसे पहले यह विचार करें कि विदेशी विश्वविद्यालयों को देश में लाने की जरूरत क्यों हुई है? पिछले कुछ वर्षों से देखा जा रहा है कि अंतरराष्ट्रीय पटल पर हमारे देशी विश्वविद्यालय गुणात्मक उच्च शिक्षा के विश्व स्तर पर मानदंड स्थापित करने में कामयाब नहीं हुए हैं।
ऐसा देखने में आ रहा है कि विदेशी धरती पर पढने जाना काफी देशी छात्रों के लिए विदेशों में काम के जरिये डॉलर कमाने का रास्ता है। देश का कीमती फरिन एक्सचेंज इन विदेशी शिक्षा संस्थानों को अदा करने से बाहर जा रहा है और इससे देश की आर्थिक हालत दबाव में आती है। इससे देश में सामाजिक असंतुलन पैदा हो रहा है जिसे हम नजरअंदाज कर रहे हैं। क्या विदेशी विश्वविद्यालयों की देश में मौजूदगी इन छात्रों के विदेश जाने की मुहिम रोक सकेगी? और विदेशी मुद्रा का बाहर जाना कम कर सकेगी? कहना न होगा कि लार्ड मैकाले की कुत्सित सोच पर आधारित शिक्षा मॉडल ने हमारे देश को विदेशी शिक्षा संस्कृति की मानसिक गुलामी दे रखी है। इसके सामने आज भी हम नतमस्तक हैं, क्योंकि हमारे पास कोई वैकल्पिक मॉडल नहीं है जिसके कारण इसके गलत प्रभाव हम आज तक भुगत रहे हैं। पाश्चात्य शिक्षा मॉडल्स ने बुनियादी भारतीय शिक्षा मॉडल की मौलिकता लगभग खत्म कर डाली है। अब प्रश्न यह भी है कि क्या विदेशी विश्वविद्यालय हमारे देश की शिक्षा जरूरतों के लिए मुफीद साबित होंगे या फिर विदेशी परफ्यूम की खुशबू की तरह साबित होंगे?