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वीडियो गेम्स की लत

वीडियो गेम खेलना धीरे-धीरे लत बन जाती है। उसके बाद संबंधित बच्चा खेल के बारे में नहीं सोचना चाहे, तब भी वह अपने-आप को रोकने में सक्षम नहीं होता। हिंसा से भरपूर वीडियो गेम्स खेलने वाले लोग निष्ठुर हो जाते हैं।
हाल की दो घटनाओं ने आम जन मानस को झकझोर रखा है। इन दोनों का संबंध मोबाइल गेम्स की बढ़ती लत से है। इनमें से एक घटना में 16 साल के एक लडक़े पर अपनी ही मां की हत्या का आरोप लगा। बताया जाता है कि मां बेटे को मोबाइल गेम खेलने से मना करती थी। उधर दूसरी घटना में इसी वजह से बेटे ने खुदकुशी कर ली। इन घटनाओं ने मोबाइल्स गेम्स के कारण परिवारों में खड़ी समस्याओं को फिर से हमारे सामने ला दिया है।

ऐसी मुश्किलों से दुनिया भर के मध्यवर्गीय परिवार जूझ रहे हैँ। कुछ समय पहले ऑस्ट्रेलियाई नेशनल यूनिवर्सिटी में हुए शोध में इस बात के ठोस सबूत जुटाए गए थे कि वीडियो गेम खेलना धीरे-धीरे लत (एडिक्शन) बन जाती है। उसके बाद हाल यह हो जाता है कि संबंधित बच्चा खेल के बारे में नहीं भी सोचना चाहे तब भी वह अपने-आप को रोकने में सक्षम नहीं होता। कुछ दूसरे जानकारों का भी कहना है कि हिंसा से भरपूर वीडियो गेम्स खेलने वाले लोग निष्ठुर हो जाते हैं। उन्हें हिंसक चित्र देख कर कोई खास फर्क नहीं पड़ता। ऐसे लोग तनाव से मुक्ति पाने के लिए वीडियो गेम का सहारा लेते हैं और अपराध करने की जगह अपना गुस्सा ऑनलाइन या वीडियो गेम पर उतारने लगते हैं।

भारत में पिछले साल राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग से अभिभावकों ने शिकायत की थी कि ऑनलाइन गेमिंग साइट्स बच्चों में जुआ, सट्टेबाजी और शोषण की प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रही हैं। जब कोरोना महामारी के दौरान बच्चों की पढ़ाई डिजिटल रूप से होने लगी थी, तो कई बार बच्चे मोबाइल लेकर पढ़ाई के नाम पर ऑनलाइन गेम भी खेलने लगे। आयोग ने गेमिंग साइट्स से बच्चों के भ्रमित होने से रोकने के लिए दिशा-निर्देशों के बारे में पूछा था। साथ ही आयोग ने सवाल किया कि उनकी साइट्स पर बाल अधिकारों के हनन को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जाते हैं। लेकिन संभवत: बात वहीं ठहर गई। लेकिन हाल की घटनाओं ने यह साफ कर दिया है कि इस समस्या पर अब अधिक गंभीर रुख अपनाए जाने की जरूरत है।

Aanand Dubey / Sanjay Dhiman

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