ब्लॉग

कश्मीर से अखिल भारतीय राजनीति

अजीत द्विवेदी

जम्मू कश्मीर में विधानसभा और लोकसभा सीटों के परिसीमन के लिए बनी जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता वाले आयोग ने जब से अपनी रिपोर्ट दी है तब से राज्य की राजनीति पर इसके असर को लेकर बहुत चर्चा हो रही है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस रिपोर्ट के लागू होने के बाद राज्य की राजनीति बहुत बदलेगी। इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि इससे कश्मीर घाटी और जम्मू के बीच विभाजक रेखा और गहरी होगी। सामाजिक व राजनीतिक दूरी बढ़ेगी और अविश्वास भी बढ़ेगा। कश्मीर घाटी का राजनीतिक वर्चस्व समाप्त होगा और इसके साथ ही दशकों से जम्मू कश्मीर की राजनीति की बागडोर संभालने वाले परिवारों की राजनीतिक ताकत भी काफी हद तक घट जाएगी।
यह भी सही है कि इस रिपोर्ट के आधार पर चुनाव होते हैं तो भाजपा की ताकत बढ़ेगी। लेकिन इसका सिर्फ इतना मतलब नहीं है। यह सिर्फ जम्मू कश्मीर की राजनीति को प्रभावित करने वाला घटनाक्रम नहीं है, बल्कि इसका अखिल भारतीय असर होगा। इस बात को ऐसे भी कह सकते हैं कि परिसीमन आयोग की रिपोर्ट भाजपा को अखिल भारतीय राजनीति में फायदा उठाने का मौका देने वाली है।

परिसीमन आयोग ने राज्य में विधानसभा की सात नई सीटें बनाने की सिफारिश की है। इनमें से छह सीटें जम्मू क्षेत्र में बढ़ेंगी और एक सीट कश्मीर घाटी में बढ़ेगी। इस तरह जम्मू में सीटों की संख्या 37 से बढ़ कर 43 हो जाएगी और कश्मीर घाटी में सीटों की संख्या 46 से बढ़ कर 47 होगी। आबादी के अनुपात में इस सिफारिश को असंतुलित बताया जा रहा है। कश्मीर घाटी में राज्य की 56 फीसदी आबादी रहती है लेकिन वहां विधानसभा की 52 फीसदी सीटें होंगी और जम्मू क्षेत्र में, जहां राज्य की 44 फीसदी आबादी है वहां विधानसभा की 48 फीसदी सीटें होंगी। जम्मू क्षेत्र में जो सीटें बढ़ाई जा रही हैं वह हिंदू बहुल सीटों में से ही निकाल कर बढ़ाई जा रही हैं। इसके बचाव में यह तर्क दिया जा रहा है कि भौगोलिक क्षेत्र को ध्यान में रख कर सिफारिश की गई है। लेकिन इस तर्क में दम नहीं है। अगर ऐसा होता तो जम्मू डिवीजन के दो जिलों राजौरी और पुंछ को अनंतनाग लोकसभा सीट में नहीं मिलाया जाता। दोनों के बीच पीर पंजाल की पहाडिय़ां हैं और कोई सीधा संपर्क नहीं है। इन्हें जोडऩे वाला पुराना मुगल रूट भी साल में छह महीने बंद रहता है। लेकिन राजौरी और पुंछ को अनंतनाग में मिलाने से उस सीट की जनसंख्या संरचना बदल जाती है।

इस रिपोर्ट में और भी कई कमियां और संवैधानिक या वैधानिक खामियां दिख रही हैं। जैसे सीटों की संख्या में बदलाव पर रोक है और कानून बना कर तय किया गया है कि 2026 से पहले कोई परिसीमन नहीं होगा और उसके बाद होने वाली जनगणना के आधार पर ही सीटों में बदलाव होगा तो अभी क्यों सीटों में बदलाव किया जा रहा है? दूसरा, परिसीमन का काम 2019 में राज्य का विशेष दर्जा खत्म करने वाले राज्य पुनर्गठन कानून के आधार पर हुआ है, जबकि यह काम 2002 के परिसीमन कानून के आधार पर होना चाहिए था। तीसरा, राज्य की विधानसभा नहीं है ऐसे में यह पहला परिसीमन होगा, जिसकी रिपोर्ट को राज्य की विधानसभा मंजूरी नहीं देगी। चौथा, 2019 के पुनर्गठन कानून को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं, जिन पर सुनवाई होनी है। उससे पहले ही परिसीमन का काम करके, मतदाता सूची बनाने और चुनाव कराने की तैयारी हो गई है।

ये कानूनी या संवैधानिक सवाल अपनी जगह हैं। मगर सिर्फ राजनीतिक नजरिए से देखें तो कुछ चीजें बहुत साफ दिख रही हैं। जैसे आखिरी बार 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जम्मू क्षेत्र की 37 में से 25 सीटों पर जीत हासिल की थी। उसे कश्मीर घाटी की 47 सीटों में से एक भी सीट नहीं मिली थी। इस बार जम्मू में सीटों की संख्या 43 हो गई है और अगला चुनाव जब भी होगा, तब यह मैसेज होगा कि यह चुनाव जम्मू कश्मीर में भाजपा की सरकार बनाने और हिंदू मुख्यमंत्री बनाने का चुनाव है। इसलिए सोच सकते हैं कि हिंदू बहुल जम्मू में कैसा माहौल होगा। अभी संख्या पर न जाएं तब भी ऐसा मान सकते हैं कि अधिकतम सीटों पर भाजपा जीतेगी। इसके अलावा दो सीटें कश्मीरी हिंदुओं के लिए आरक्षित करने की सिफारिश की गई है। इन सीटों पर पुड्डुचेरी की तर्ज पर केंद्र सरकार द्वारा दो लोग मनोनीत किए जाएंगे, जिनमें से एक महिला होगी। उन्हें पुड्डुचेरी की ही तरह विधानसभा में वोटिंग का अधिकार होगा। आयोग ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से पलायन करके जम्मू में बसने वालों को भी जम्मू कश्मीर विधानसभा में प्रतिनिधित्व देने की सिफारिश की है।

पहली बार जम्मू कश्मीर विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए नौ और अनुसूचित जातियों के साथ सात सीटें आरक्षित करने का प्रस्ताव दिया गया है। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सभी सात सीटें जम्मू क्षेत्र में हैं, जबकि जनजातियों के लिए आरक्षित नौ में से छह सीटें जम्मू में और तीन कश्मीर घाटी में हैं। अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण का बक्करवाल और गूजर दोनों समुदायों ने स्वागत किया है। इन दोनों को 1991 में जनजाति का दर्जा दिया गया था लेकिन इन्हें विधानसभा में कभी भी पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया। कश्मीर घाटी में इनके लिए आरक्षित तीन सीटों पर भाजपा अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद कर रही है। पहली बार घाटी में भाजपा के सीट जीतने की संभावना दिख रही है। घाटी में एक नई सीट कुपवाड़ा में बनी है, जो सज्जाद लोन की पीपुल्स कांफ्रेंस के मजबूत असर वाला इलाका है। सज्जाद लोन भी अभी परिसीमन का विरोध कर रहे हैं लेकिन उनको भाजपा का करीबी माना जाता है।

अब सवाल है कि अगर भाजपा जम्मू क्षेत्र की 43 में से अधिकतम सीटें जीत जाती है तब भी उसका बहुमत कैसे होगा? बहुमत का आंकड़ा 47 सीट का होगा। जम्मू से जो सीटें कम रह जाएंगी उसकी भरपाई घाटी की आरक्षित तीन सीटों, मनोनीत श्रेणी की दो सीटों और पीपुल्स कांफ्रेंस जैसी पार्टियों की सीटों से होगी। लोकसभा चुनाव से पहले राज्य विधानसभा के चुनाव करा कर भाजपा किसी तरह से अपनी सरकार बनवाएगी और देश के इकलौते मुस्लिम बहुल पूर्ण राज्य का हिंदू मुख्यमंत्री बनवाएगी। सोचें, इसका पूरे देश में बहुसंख्यक हिंदू मतदाताओं की सोच पर कैसा असर होगा! परिसीमन आयोग ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के लिए निर्धारित 24 सीटों को नई विधानसभा में भी शामिल किया है। पहले इसे खत्म कर देने की बात हो रही थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया है। तभी इस बात की भी चर्चा है कि अगले लोकसभा चुनाव से पहले पाक अधिकृत कश्मीर को भारत में मिलाने के लिए सैन्य कार्रवाई हो सकती है। जो हो, अगर पिछला लोकसभा चुनाव पुलवामा में शहीद हुए जवानों के नाम पर हुआ था तो अगले चुनाव में भी कश्मीर निश्चित रूप से बड़ा मुद्दा होगा। अगर अयोध्या से हिंदुत्व का भाव जागृत होगा तो कश्मीर से हिंदुत्व और राष्ट्रवाद दोनों का!

Aanand Dubey

superbharatnews@gmail.com, Mobile No. +91 7895558600, (7505953573)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *