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रावण जल्दी नहीं मरता

हरिशंकर व्यास
राष्ट्रपति पुतिन न हताश होंगे और न हार मान सकते हैं। दुनिया और खास कर पश्चिमी दुनिया यूक्रेन का ध्वंस देख बूझ रही है कि रावण अब समझेगा। उसे लगेगा कि ध्वंस के बावजूद यदि यूक्रेन की वानर सेना लड़ रही है तो रास्ता निकालो। ये सब गलतफहमियां हैं। तभी तुर्की में बातचीत के बाद का आशावाद 48 घंटों में खत्म है। पुतिन और उनके कमांडर नए सिरे से मोर्चे बना रहे हैं। सेना की रिपोजिशनिंग हो रही है। कुछ जानकारों का मानना है कि पुतिन को सही सूचनाएं नहीं मिल रही हैं इसलिए लड़ाई है। पहली बात भला तानाशाह याकि रावण से सत्य बोलने, उसे सत्य बताने की हिम्मत कैसे हो सकती है। ऐसा ब्रेझनेव (अफगानिस्तान युद्ध), याह्या खान (बांग्लादेश), हिटलर (दूसरे महायुद्ध) के वक्त था तो राम-रावण की लड़ाई के समय भी था। रावण ने वानर सेना पर कितने अट्टहास लगाए थे? मेघनाद, कुंभकर्ण आदि के एक, एक कर मारे जाने के बावजूद उसका अजेय होने का घमंड क्या आखिर तक नहीं था?

हर तानाशाह राजा, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री का अस्तित्व ही झूठ में जीने और जनता को झूठ खिलाने पर होता है। तभी सत्य पर गौर करें कि रूसी सेना की असफलता 35 दिनों से बोलती हुई है। वह प्रोफेशनल सेना की तरह नहीं, बल्कि राक्षसों की तरह लड़ रही है। मानव मूल्यों का बर्बर संहार कर रही है। कामयाबी से कोसों दूर है बावजूद इसके रूस में पुतिन का वैसे ही जयकारा है जैसे जर्मनी के लोगों का हिटलर के लिए था। कल्पना करें रूस के साढ़े 14 करोड़ लोगों की मनोदशा पर, वे यूक्रेन की अपनी स्लाविक नस्ल के भाइयों की बरबादी के बावजूद इस झूठ से जयकारा लगाते हुए हैं कि पुतिन हैं तो सब सही है।

इसलिए इन बातों का अर्थ नहीं है कि सेना की नाकामियों और नुकसान से पुतिन परेशान होंगे। पंद्रह हजार सैनिक मरें या लाख-दो लाख सैनिक मरें, पुतिन और उनकी लंका पर असर नहीं होगा। उलटे बेचैन और परेशान वे लोग होंगे, जो सत्य में, मानवीयता में जीते हैं। रूस और चीन दोनों देश उस नस्ल के प्रतिनिधि हैं, जिसमें कन्फ्यूशियस जैसे विचारकों ने राज्यसत्ता और राजा की सर्वोच्चता में उसके गुणों को धुव्रतारा बताया है वह जो अटल होता है और जिसकी ओर चांद-सितारे होते हैं। जारशाही, स्तालिनशाही और पुतिनशाही के रूस का लब्बोलुआब है कि प्रजा बार-बार बरबाद हो, बार-बार तानाशाही में मरती रहे लेकिन हर अनुभव को भुलाते हुए। हर क्रांति नई गुलामी बनवाने वाली। ऐसा ही चाइनीज सभ्यता और नस्ल का मसला है। हर क्रांति वहां मनुष्य की अधीनता का नया प्रयोग!

पते की बात कन्फ्यूशियस का राजा के लिए कहा यह वाक्य है कि मतलब नहीं रखता जो तुम कितने धीमे हो, असल बात कभी रूकना नहीं है। दुनिया को और खासकर भारत को इस गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए कि राष्ट्रपति शी जिनफिंग और उनकी कम्युनिस्ट सत्ता ने अपना जो भारत मिशन बनाया है वह समय की बदली चाल से या बातचीत से खत्म होगा। वह धीमी गति से बढ़ता हुआ अंतत: उसके वैसे ही सैनिक ऑपरेशन में बदलेगा जैसे पुतिन का यूक्रेन ख्याल धीरे-धीरे (2014 से) बढ़ा और अब युद्ध में सेना के धीमे सत्य के बावजूद बातचीत की आड़ में नई सैनिक मोर्चेबंदी बनवाते हुए है।
पुतिन सोच नहीं सकते हैं कि वे हार भी सकते हैं। उनकी शासन व्यवस्था का इकोसिस्टम और क्रेमलिन की चारदिवारी में वैश्विक निंदा, अलगाव, बहिष्कार, पाबंदियों का अर्थ नहीं है। उनका रोडमैप दीर्घकालीन मिशन लिए हुए है।

इसका प्रमाण? वह रोडमैप जो बीजिंग में शी जिनफिंग, पुतिन और इमरान खान की तिकड़ी ने सोचा। तथ्य नोट करें कि शीतकालीन ओलंपिक से ठीक पहले पुतिन चीन गए। यूक्रेन पर हमले से पहले पुतिन ने शी जिनफिंग को विश्वास में लिया। पाकिस्तान के इमरान खान भी बीजिंग गए। उसके बाद हमले के दिन इमरान खान मास्को मे पुतिन से मिलते हुए थे। ध्यान रहे शी जिंनफिंग ने पुतिन और इमरान खान को अपने यहां बुला कर बात की। मतलब किंगपिन शी जिनफिंग। फिर इस्लामाबाद में इमरान खान ने 57 देशों के इस्लामी संगठन ओआईसी की बैठक आयोजित की। चीन उसमें विशेष मेहमान।

सम्मेलन में कश्मीर मुद्दे पर भारत की भर्त्सना और उसका चीन के विदेश मंत्री का सम्मेलन में समर्थन करना। फिर तुरंत बाद इस्लामाबाद से ही चीन के विदेश मंत्री वांग यी काबुल गए। वहां पुतिन का प्रतिनिधि भी पहुंचा। तालिबान-चीन- रूस के प्रतिनिधियों की काबुल में बातचीत के पीछे पाकिस्तान का साझा था। काबुल से चीन के विदेश मंत्री वांग यी दिल्ली आए। उन्होंने भारत पर रूस के समर्थन के लिए डोरे डाले या आपसी सीमा विवाद को हाशिए में रखने के लिए भारत को मनाया, इस पर कई अनुमान हैं। मगर भारत ने चीन के साथ बेबाकी से बात होने की जानकारी दे कर मैसेज बनाया कि उसने चीन पर दबाव बनाया। अपना मानना है कि काबुल से लौटे चीन के विदेश मंत्री ने क्षेत्रीय स्थिरता के तकाजे में भारत को ज्ञान दिया होगा कि अफगानिस्तान पर कुछ करना है और उसमें भारत भागीदार बने। चीन के खेले का खिलाड़ी बने।

उसके बाद रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव चीन पहुंचे। दुनिया में कयास हुआ कि यूक्रेन में खराब दशा के कारण चीन की रूस लल्लोचपो कर रहा है। ऐसा कुछ नहीं है। शी जिनफिंग ने बहुत पहले से अपनी धुरी पर नई विश्व व्यवस्था बनाने का मंसूबा बना रखा है। उस नाते उसके लिए मौका है कि वह यूक्रेन की लड़ाई और रूस के खिलाफ वैश्विक स्विफ्ट वित्तीय लेन देन की पश्चिमी धुरी की डॉलर व्यवस्था के आगे अपनी करेंसी यान की धुरी बनवाए। अमेरिका केंद्रित संयुक्त राष्ट्र की एक धुरी की जगह अपने प्रभाव और बाकी सभ्यताओं के अलग-अलग विकल्प बना कर बहुध्रुवीय व्यवस्था से पश्चिम का दबदबा खत्म करे।

रूस के विदेश मंत्री, चीन के विदेश मंत्री ने बीजिंग में बैठकर दो दिन यहीं मंत्रणा की होगी कि कैसे डॉलर व्यवस्था से स्वतंत्र यान, रूबल, रुपए और इस्लामी देशों की करेंसी में लेन-देन का नया वैश्विक ढांचा बने। इसी रोडमैप में अब रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव भारत आए हैं। वे भारत को तेल और हथियार देने की सस्ती-भारी पेशकश करके उसे रूबल और रुपए की पुरानी व्यवस्था को मजबूत करने के लिए मनाएंगे ताकि अपने आप चीन की नई विश्व व्यवस्था, नई वित्तीय व्यवस्था की ओर भारत खींच जाए। उसके उत्तरी धुव्र का तारा हो जाए।चीन ने अफगानिस्तान पर बैठक भी बुला ली है। तालिबान के बहाने इस्लामी जमात का दिल जितने के लिए बीजिंग में अफगानिस्तान पर चर्चा के लिए रूस, पाकिस्तान, ईरान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के प्रतिनिधियों को बुलाया है। कतर और इंडोनेशिया के प्रतिनिधियों के साथ बीजिंग में अन्य देशों के राजदूतों, अमेरिकी-यूरोपीय प्रतिनिधियों से चीन अपनी कमान में अफगानिस्तान की मान्यता का रास्ता बनवाएगा।

चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने होशियारी दिखलाते हुए कहा है कि चीन, अमेरिका, रूस और पाकिस्तान- इन सभी देशों का अफगान मुद्दे पर विशेष प्रभाव है। इसलिए अफगान पड़ोसी देशों के विदेश मंत्रियों की तीसरी बैठक सकारात्मक माहौल में सभी पक्षों की सहमति सेज्वहां शांति बहाल के मकसद से है। बैठक में चीन के विदेश मंत्री वांग यी और तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी होंगे। सवाल है क्या भारत के विदेश मंत्री या भारत के प्रतिनिधि बैठक में शामिल होंगे? संभवतया रूस के विदेश मंत्री लावरोव अपनी यात्रा में भारत को मनाने की कोशिश करें। खबर यह भी है कि लावरोव अफगानिस्तान की बैठक में भी भाग लेंगे। यदि ऐसा है तो समझ सकते हैं कि चीनी और रूसी विदेश मंत्री भारत के विदेश मंत्री को अपने खेले में शामिल करने के लिए कितनी कोशिश कर रहे हैं।पूरा खेल चीन और उसके रूस-पाकिस्तान त्रिकोण का है। बकौल रूसी विदेश मंत्री दुनिया अंतरराष्ट्रीय संबंधों के इतिहास में एक बहुत ही गंभीर चरण से गुजर रही है। और वैश्विक संबंधों को फिर से आकार देने के अंत में, हम, आपके साथ, और अपने हमदर्दों के साथ एक बहुध्रुवीय, न्यायसंगत, लोकतांत्रिक विश्व व्यवस्था की ओर बढ़ेंगे।

क्या होगी रावणों की यह विश्व व्यवस्था? जब मन हुआ अपनी सुरक्षा, अपनी ऐतिहासिकता व नस्ल के चेहरों की बुनावट के आधार पर पुतिन को यूक्रेन कभी हमारा था का इलहाम हुआ तो सेना को हमले का आदेश! चीन के माओ या शी जिनफिंग को रात में सपना आया कि लद्दाख, सिक्किम और अरूणाचल प्रदेश में हमारे जैसे लोग हैं तो सुबह पीपुल्स आर्मी को आदेश कि करो भारत की और कूच! रावण की इस असुरी सभ्यता में वर्तमान का सत्य अर्थ नहीं रखता है बल्कि भूख और इलहाम के ड्राइविंग फोर्स से सनक बनती है कि छल से उठा लो सीता को! कब्जा लो यूक्रेन को भले वह क्यों न आज स्वतंत्र-सार्वभौम है। कब्जा लो ताइवान, अरूणाचल प्रदेश को भले वर्तमान की विश्व व्यवस्था में भारत की एकता और अखंडता में अरूणाचल भारत का मान्य अंग है। सो, जैसा मैंने कहा असुरी सभ्यता और उसके रावण न सनक छोड़ते हैं और न हार मानते हैं तभी यूक्रेन और विश्व राजनीति का मौजूदा संघर्ष लंबा चलेगा, बहुत गुल खिलाएगा।

Aanand Dubey

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