विकट स्थिति में दुनिया
संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी ने पिछले साल सात करोड़ से ज्यादा लोगों को अत्यधिक गरीबी में डुबो दिया। उधर कई विकासशील देश कर्ज पर दिए जाने वाले भारी ब्याज के कारण महामारी के दुष्प्रभावों का शिकार हो रहे हैं। इससे भयानक स्थिति पैदा हो रही है।
यूक्रेन युद्ध का एक बड़ा नुकसान यह हुआ है कि कोरोना महामारी और उसकी वजह से पैदा हुई समस्याओं पर से दुनिया का ध्यान हट गया है। जबकि ऐसी कई गंभीर समस्याओं पर से लगातार परदा हट रहा है। मसलन, संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी ने पिछले साल सात करोड़ से ज्यादा लोगों को अत्यधिक गरीबी में डुबो दिया। उधर कई विकासशील देश कर्ज पर दिए जाने वाले भारी ब्याज के कारण महामारी के दुष्प्रभावों का शिकार हो रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक अमीर देश बेहद कम ब्याज पर उधार ली गई रिकॉर्ड राशि के साथ महामारी की मंदी से उबर सकते हैं। लेकिन गरीब देश अभी भी अपना कर्ज चुकाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस स्थिति ने विशाल वैश्विक वित्तीय अंतर पैदा कर दिया है। गरीब देशों ने अपना कर्ज चुकाने में अरबों डॉलर खर्च किए। उन्हें उच्च ब्याज दर पर ऋण मिला था, इसलिए वे शिक्षा और स्वास्थ्य सुधार, पर्यावरण और असमानता घटाने की दिशा में ज्यादा खर्च नहीं कर सके।
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक 2019 में 81.2 करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी में जी रहे थे। ये लोग और रोजाना 1.90 डॉलर या उससे कम खर्च करने की क्षमता रखते थे। 2021 तक महामारी के बीच ऐसे लोगों की संख्या बढक़र 88.9 करोड़ हो गई। जाहिर है, इस रिपोर्ट ने भयानक तस्वीर हमारे सामने रखी है। लाखों लोगों को भूख और गरीबी से बाहर निकालने की चुनौती दुनिया के सामने आ गई है। जलवायु परिवर्तन और कोविड-19 महामारी ने स्थिति को पहले ही भयानक बना दिया था। अब यूक्रेन युद्ध का वैश्विक प्रभाव भी महसूस किया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र के एक विश्लेषण से संकेत मिला है कि यूक्रेन में युद्ध के परिणामस्वरूप 1.7 अरब लोगों को भोजन, ऊर्जा और खाद की उच्च कीमतों का सामना करना पड़ रहा है। इस कारण 2023 के आखिर तक 20 फीसदी विकासशील देशों में प्रति व्यक्ति जीडीपी 2019 से पहले के स्तर पर नहीं लौटेगी। इसमें यूक्रेन युद्ध के कारण होने वाली अतिरिक्त लागत शामिल नहीं है। जो गरीब देश कर्ज चुकाने पर अरबों डॉलर खर्च कर रहे हैं, उन्हें शिक्षा और बुनियादी ढांचे पर खर्च में कटौती करनी पड़ रही है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक अमीर देश अपनी आय का 3.5 फीसदी कर्ज चुकाने पर खर्च करते हैं। जबकि गरीब देशों को अपनी आय का 14 फीसदी खर्च करना पड़ता है।