बढ़ती आर्थिक विषमता एक बृहद सामाजिक चुनौती
स्नेहा यादव
वर्तमान समय में विश्व के संपूर्ण देश अपने आप को लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा से रूबरू कराते हैं। सभी राज्यों का मानना है कि वह अपने नागरिकों के लिए सर्व सुलभ संरचनात्मक व्यवस्था के संचालन हेतु भरकस प्रयास करता रहता है परंतु संसाधनों के उचित वितरण प्रणाली के ना होने पर किसी भी देश में गहन लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा स्पष्ट नहीं होती है। इसके लिए आर्थिक विषमता, गरीबी भूखमरी और अशिक्षा से निदान पाना अत्यंत आवश्यक हो जाता है क्योंकि इन सभी सामाजिक विषमताओं के चलते किसी भी समाज की उन्नति नहीं होती है यही कारण है कि भारत जैसे सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में लोकतंत्र की प्रगति और उन्नति तो हो रही है परंतु यहां आर्थिक विषमता और गरीबी तथा भुखमरी जैसे आयामों में भी उन्नतोदर वृद्धि हो रही है जिससे आर्थिक लोकतंत्र की अवधारणा से हम उतने ही पीछे जा रहे हैं जितना ही इन सभी गतिविधियों में प्रगति हो रही है। इन सभी कारणों का एक अन्य कारण ही है वह है भारत में व्यापक बेरोजगारी बेरोजगारी के कारण आर्थिक विषमता की अवधारणा संकल्पित नहीं हो पाती है क्योंकि जब तक व्यक्तियों के पास काम नहीं होगा तब तक उनके किसी भी प्रकार के आय में वृद्धि नहीं होती और जब तक उनके आय में वृद्धि नहीं होती है तब तक उनके परिवार में संपन्नता नहीं आती है और वह घर और परिवार में बुनियादी समस्याओं से ही जूझते रहते हैं और अपने अवसरों की तलाश नहीं कर पाते हैं।
जिससे उनका विकास रुक जाता है संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2015 में सतत विकास प्रक्रिया की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए यह लक्ष्य रखा कि 2030 तक इनको हासिल कर लिया जाना चाहिए इसमें आर्थिक विषमता को मिटाने हेतु विभिन्न प्रकार के आधारभूत स्तंभों को भी स्पष्ट किया गया है परंतु इन सतत विकास के लक्ष्यों में भारत 115 स्थान पर था यदि विभिन्न जानकारियों और रिपोर्ट की बात माने तो भारत अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक 2020 में इसकी बेरोजगारी दर 7.11 किस दिन तक पहुंच गई है यह अन्य कई देशों से और अन्य कई वर्षों से सर्वोच्च स्तर पर है। इसका एक कारण यह भी बताया जाता है कि कोरोना महामारी के दौरान बहुत से लोग घर छोडक़र पलायन हुए थे जिससे इन सभी आयामों में वृद्धि हुई है। परंतु इन आयामों में वृद्धि होने के साथ-साथ भारत के नागरिकों का रहन-सहन का स्तर अत्यंत नीचे जा रहा है जिसमें खाद्य और कृषि रिपोर्ट 2018 की बात करें तो भारत दुनिया के 821 कुपोषित लोगों में से 195. 9 मिलियन लोग रहते हैं। यह दुनिया के भूखे लोगों का लगभग 24 फ़ीसदी है।
भारत में अल्प पोषित लोगों की संख्या अन्य एशियाई देशों से भी अधिक है हाल ही में प्रकाशित आप होम की रिपोर्ट यह दर्शाती है कि भारत में पूंजीपति और संपन्न होते जा रहे हैं जिससे समाज में असमानता बढ़ रही है। विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 में यह बताया गया है कि दुनिया के सबसे गरीब आधी आबादी के पास मुश्किल से 2त्न संपत्ति है जबकि दुनिया के सबसे अमीर 10त्न आबादी के पास कुल संपत्ति का 76त्न हिस्सा है यह किसी भी देश के आर्थिक लोकतंत्र की अवधारणा को स्पष्ट करने के लिए अत्यंत व्यापक है। भारत में लोक कल्याणकारी राज्य की प्रगति के लिए और आर्थिक लोकतंत्र की अवधारणा को उन्नति शील बनाने के लिए अनेक प्रकार की योजनाएं भारत सरकार एवं राज्य सरकारों के द्वारा क्रियान्वित की जा रही हैं परंतु इस असमानता और विषमता को गति देने वाले दूषित आधार जैसे भ्रष्टाचार, कर चोरी, मजदूरों को पैसा ना मिलना और अन्य प्रकार की गतिविधियों को कम करने की आवश्यकता है क्योंकि जब तक आर्थिक विषमता समाज से नहीं मिटेगी तब तक आर्थिक लोकतंत्र की अवधारणा सफल नहीं हो सकेगी और जब तक आर्थिक लोकतंत्र की अवधारणा सफल नहीं हो सकेगी तब तक लोक कल्याणकारी राज्य प्रगतिशीलता स्थापित नहीं कर सकेगा।