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सर्द जापान में गर्मी व बुजुर्ग

हरिशंकर व्यास
जापान में भीषण गर्मी है! इतनी की एसी की खपत से देश में बिजली का टोटा है। सरकार को बिजली बंद रखने का लोगों से आह्वान करना पड़ा। राजधानी टोक्यो में जून में पारा 35 डिग्री के आसपास था। कुछ शहरों में शुक्रवार को 40 डिग्री तापमान था। सोचें, धुर उत्तर के जापान में इतनी गर्मी! पर जापान ही क्यों जून में जापान के अलावा चीन, इटली, नार्वे, फिनलैंड आदि सब तरफ गर्मी रिकार्ड तोड़ थी। दक्षिणी चीन में गर्मी और बाढ़ से जून के महीने में जो बरबादी हुई है वह रिकार्ड तोड़ है। आमतौर पर उत्तरी ध्रुव के इन धुर उतरी देशों में जुलाई से अगस्त के महिनों में गर्मी के रिकार्ड टूटते हैं लेकिन इस साल जून से ही लोगों के पसीने छूटे हुए हैं। तभी लोगों के दिल-दिमाग में जलवायु परिवर्तन की चर्चा चौतरफा है।

बहरहाल, जापान पर लौटा जाए। जापान में रिकार्ड तोड़ गर्मी इसलिए चिंताजनक है क्योंकि यह देश सर्वाधिक बुजुर्गों को पालता हुआ है। स्वाभाविक है गर्मी से बुजुर्ग बेहाल होंगे। मगर जापान देश का कमाल देखिए कि एकल जीवन जीते हुए बुजुर्गों के लिए तुरंत अस्थायी सामूहिक कैंप बने। चौबीसों घंटे एसी और देख-रेख व खाने-पीने की व्यवस्था के साथ हॉल में इनडोर खेल, टीवी आदि की सुविधा! इस व्यवस्था की फुटेज को देख कर ध्यान आया कि पिछले सप्ताह कोई पांच हजार (अधिकांश 65 वर्ष से अधिक उम्र के) लोगों को लू लगने के कारण अस्पतालों में भर्ती कराया गया था लेकिन किसी की मृत्यु की खबर नहीं थी।

तभी गजब है जापान देश। हर स्थिति और विपदा में अपने नागिरकों को बचाने में समर्थ! जापान प्राकृतिक आपदाओं का मारा देश है लेकिन आपदा प्रबंधन ऐसा गजब है कि भूकंप हो या सुनामी या एटमी पॉवर प्लांट का हादसा, सभी में जान का नुकसान न्यूनतम मिलेगा! गर्मी, सर्दी, बाढ़, तूफान, सुनामी, भूकंप जैसी तमाम आपदाओं-विपदाओं में एक-एक नागरिक की जान मूल्यवान। जापान चारों और से समुद्र से घिरा है। इसलिए सोच सकते है कि तेज गर्मी और उमस की दोहरी मार में बूढ़े जापानियों पर कैसी गुजर रही होगी? लेकिन सत्य है कि तमाम शोर और चिंताओं के बीच बूढ़े लोग बेफिक्र हैं। इसलिए कि एक तो बूढ़े लोग अपने आप में समर्थ हैं। दूसरे जापानी समाज की बुनावट और सरकार का ऑटो मोड का ताना-बाना अपने आप सभी व्यवस्थाएं बनाते हुए होता है। इसलिए कितनी ही गर्मी पड़े, आपदा-विपदा आए मगर जापानियों में अकाल मृत्यु का न्यूनतम खतरा है।

कोई आश्चर्य नहीं जो जापान में जीवन प्रत्याशा सर्वाधिक है। नब्बे साल की उम्र सामान्य बात है। जापान में 29 प्रतिशत आबादी बुजुर्ग लोगों की है। साढ़े बारह करोड़ लोगों में कोई चार करोड़ लोग 65 साल की उम्र से अधिक के है। बाकी विकसित देशों अमेरिका और यूरोपीय देशों (कोई 20 प्रतिशत) के मुकाबले में यह बहुत ज्यादा। सभी पेंशन पाते हुए हैं। उस नाते जापान का नंबर एक संकट यह है कि कमाने वाले कम हैं और खाने वाले ज्यादा। कामकाजी नौजवान आबादी लगातार कम होते हुए है। एक अनुमान है कि सन् 2025 से 2040 के बीच कामकाजी (20-64 वर्ष की उम्र के लोग) आबादी घटते-घटते मुश्किल से एक करोड़ बचेगी। सन् 2000 में एक बुजुर्ग के पीछे 3.6 लोग कार्यशील थे। वह अनुपात सन् 2050 में घट कर 1.3 रह जाएगा। मतलब तब बहुसंख्यक आबादी बुर्जुग होगी।

तब बुर्जगों का निर्वहन कैसे होगा? जाहिर है वर्किंग और बुजुर्ग आबादी के अनुपात का मामला गंभीर है। वर्किंग लोगों पर टैक्स से ही जापान में बुजुर्ग व्यवस्था का रख-रखाव है। जापान में दो अहम टैक्स हैं। एक उपभोग टैक्स दूसरा बुजुर्गों के रख-रखाव का क्षतिपूर्ति टैक्स। देश की वर्किंग आबादी बुजुर्गों की पेंशन का प्रीमियम अपने वेतन पर 18.3 प्रतिशत टैक्स से भरती है। सोचें, कैसा समाज, जिसमें हर वर्किंग व्यक्ति (सरकारी-गैर-सरकारी सभी तरह के कर्मचारी) बुजुर्ग व्यवस्था के लिए यह जिम्मेवारी माने हुए हैं कि हमें उनकी व्यवस्था करनी है। बुजुर्ग समाज के लिए वर्किंग आबादी प्रीमियम भरती है तो सरकार की आमाद के मुख्य सोर्स उपभोग टैक्स में भी बुजुर्गों के बजट का बड़ा हिस्सा है। इस टैक्स की रेट फिलहाल दस प्रतिशत है लेकिन सन् 2050 तक बुजुर्गों की बढऩे वाली आबादी के अनुपात में जानकारों का मानना है कि इसे सन् 2040 तक 22 प्रतिशत और सन् 2050 में 30 प्रतिशत करना होगा। इस तरह पैसा जुटा कर और प्रतिवर्ष एक प्रतिशत की विकास दर से जापान भविष्य में अपने को चला पाएगा।

सो, समस्या है बुजुर्गों की आबादी। यों इक्कीसवीं सदी में सभी तरफ वह होने वाला है जो पिछली सदी में जापान में हुआ था तथा अमेरिका और यूरोपीय देशों में होता हुआ है। मतलब जन्म दर का घटना। मृत्यु दर कम और उससे अधिक जन्म दर कम! जापान में सन् 2010 आबादी का शिखर था। मौजूदा वक्त नई पीढ़ी व वर्किंग आबादी को इस तरह ढालते हुए है कि लडक़े-लड़कियों में शादी की दिलचस्पी खत्म है। यदि शादी करेंगे तो भी उम्र गुजरने के बाद। इसलिए बच्चे पैदा होने की जन्म दर पैंदे पर है। जापान से ही अब दुनिया में यह ट्रेंड बनता लगता है कि नौजवान एकल जीवन जीने लगे हैं। वे अकेले रहते हैं। अकेले खाएंगे और अकेले घूमेंगे और मौज-मस्ती भी अकेले। यह जीवन पद्धति जापान की ‘सुपर सोलो’ संस्कृति है। शादी की जरूरत नहीं और न ही किसी के साथ साझा रहने की जरूरत। बच्चों का झंझट बनाने का तो खैर सवाल ही नहीं।

यह नई समाज रचना है। इसलिए कि जापान सामूहिक जीवन शैली और घर-परिवार के आग्रह वाला देश रहा है। लेकिन अब क्या तो बुजुर्ग और क्या नौजवान सब एकल जीवन में संतोष, वैयक्तिक सुख में उस परमानंद अवस्था का जीवन जीते हुए हैं, जिसका बोध शायद निजता में ही संभव है। अजीब सा मसला है। सोचें, कल्पना करें कि दूसरे महायुद्ध के विध्वंस के बाद जापानियों ने अपने और अपने देश को कैसे बनाया? खूब अनुशासित मेहनत की होगी। आधुनिक तकनीक को अपना कर उसने दुनिया को श्रेष्ठ औद्योगिक उत्पादन दिए। बीस सालों में जापान आर्थिकी में वैश्विक ताकत बना। तभी सभ्यता-समाज-संस्कृति और राष्ट्रीयता की स्वंयसिद्धि और गौरवसिद्धी की जापान की कहानी बेजोड़ है। विज्ञान-तकनीक-भौतिक उपलब्धियों की समझ में जापानियों की तासीर को इस बात से समझा जाए कि आबादी तथा वर्किंग आबादी के भावी सिनेरियो में वहां लोग यह सुझाव देते हुए हैं कि कोई बात नहीं तब तक रोबोट काम करने लगेंगे!

तब लोग क्या करेंगे? वही करेंगे जो आबादी के 29 प्रतिशत बुजुर्ग अभी कर रहे हैं। आम तौर पर रिटायर होने के बाद भी काफी बुजुर्ग काम करते हैं। सरकार 70 वर्ष की उम्र तक काम के पक्ष में है। सेहत के मामले में बाकी देशों के मुकाबले जापान की बुजुर्ग आबादी कमजोर नहीं है। जीवन शैली से वैसी बीमारियां नहीं हैं, जैसे बाकी देशों में होती हैं।

80 वर्ष की उम्र के आसपास यदि बुजुर्ग दंपत्ति में से कोई एक मरा तब भी दूसरे के लिए जीवन मुश्किल वाला नहीं क्योंकि हर व्यक्ति को अपना काम खुद करने की आदत है। उलटे लगता यह है कि बुजुर्गियत में जापानी लोग अधिक शारीरिक श्रम करते हैं। घर में बगिया बनाना, एक-एक पेड़ को अपनी कलाकारी से निखारना, जंगल-पहाड़, समुद्र किनारे फिशिंग, कुकिंग, कला, संगीत आदि के इतनी तरह के शगल हैं मानो विरासत के परमांनद में जीने के लिए ही जापान की बुजुर्ग आबादी है। शायद यह पीढ़ीगत भी है तभी वर्किंग नौजवान आबादी यह सोचते हुए बूढ़े लोगों के लिए टैक्स, प्रीमियम भरती है क्योंकि उन्हें भी पता है, वे भी चाहते हैं कि बुजुर्ग अवस्था में वे भी बेफिक्री से जीवन के अंतिम सालों का आनंद लें। 65 से 90 या सौ साल तक जीवन को जिंदादिली से जीयें न कि बुढ़ापे की चिंताओं से।

तभी जापान इसलिए लाजवाब है क्योंकि वहां ऐसे लोग बड़ी संख्या में हैं, जो संतोष, सुकून और सुख की जिंदगी जी रहे हैं। ‘क्वालिटी ऑफ लाइफ’ के जुमले को अपनी जिंदगी से साकार बनाए हुए हैं। पृथ्वी पर ही स्वर्ग और मोक्ष भोग रहे हैं!

Aanand Dubey / Sanjay Dhiman

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