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महंगाई, बेरोजगारी और अनाज का संकट

अजीत द्विवेदी
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में साढ़े 13 फीसदी की विकास दर का आंकड़ा देखने के बाद भी यह कहना कि देश की अर्थव्यवस्था गहरे संकट में हैं, थोड़ा जोखिम भरा काम है। लेकिन हकीकत यही है कि देश की अर्थव्यवस्था बहुत मुश्किल दौर से गुजर रही है। महंगाई सरकार के काबू में नहीं आ रही है। बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है। चालू खाते का घाटा बढ़ रहा है तो बढ़ते आयात बिल और रुपए की गिरती कीमत को संभालने में विदेशी मुद्रा भंडार कम होता जा रहा है। फिर भी रुपया गिरता ही जा रहा है। अनाज का नया संकट देश के सामने खड़ा हो गया है, जिसकी वजह से सरकार को निर्यात पर नियंत्रण करना पड़ रहा है। सरकार एक को संभालने जाती है तब तक दूसरे मोर्चे पर मुश्किल आ जाती है। सरकार बार बार अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत होने की बात करके सवालों से बच रही है और इंतजार कर रही है कि कोई चमत्कार हो जाए तो संकट टले। लेकिन कोई चमत्कार होता नहीं दिख रहा है।

महंगाई का नया आंकड़ा सरकार की मुश्किलें और बढ़ाने वाला है। मई से जुलाई के बीच तीन महीने खुदरा महंगाई की दर गिरने का ट्रेंड था, जिससे लग रहा था कि यह ट्रेंड जारी रहा तो सरकार को बजट में तय लक्ष्य हासिल करने में आसानी होगी। सरकार का लक्ष्य पूरे साल में महंगाई दर को 6.7 फीसदी तक रखने का है। लेकिन अगस्त में महंगाई का ट्रेंड बदल गया। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित खुदरा महंगाई दर बढ़ कर सात फीसदी हो गई। रिजर्व बैंक ने छह फीसदी को महंगाई की सुविधाजनक सीमा माना है। लेकिन भारत में पिछले आठ महीने से महंगाई दर इस सुविधानजक सीमा से ऊपर है। इसे नियंत्रित करने के लिए रिजर्व बैंक ने तीन बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है। तीन बार की बढ़ोतरी के बाद रेपो रेट 5.40 फीसदी हो गया है। यह 2019 में कोरोना शुरू होने से पहले के स्तर पर पहुंच गई है। रेपो रेट बढऩे का सीधा असर यह होता है कि विकास दर प्रभावित होती है। अगर सरकार महंगाई रोकने की कोशिश करती है तो विकास दर गिरेगी और अगर विकास दर बढ़ाने की सोचेगी तो महंगाई बेकाबू होगी। यह एक किस्म का दुष्चक्र है, जिसमें सरकार घिरी है।

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने बताया है कि महंगाई दो कारणों से बढ़ रही है। एक कारण है खाने-पीने की चीजों की कीमतों में बढ़ोतरी और दूसरा कारण है पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में इजाफा। सरकार चाहे तो इन दोनों कारणों को कुछ हद तक दूर सकती है। सरकार तत्काल पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमतों में कमी कर सकती है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में बड़ी गिरावट हुई है। जून के महीने में कच्चा तेल 116 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गया था, जो घटते घटते आठ सितंबर को 88 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया। एक बैरल पर 28 डॉलर की गिरावट हुई है लेकिन इसका कोई लाभ उपभोक्ताओं को नहीं मिला है। पेट्रोलियम कंपनियों के घाटे की भरपाई का तर्क दिया जा रहा है, जो बेबुनियाद है। सरकार चाहे तो तत्काल राहत दे सकती है।

इसी तरह खाने-पीने की चीजों की कीमतों में बढ़ती महंगाई को भी सरकार कुछ हद तक काबू में कर सकती है। उसने इस दिशा में एक पहल की है। सरकार ने गेहूं और आटे के बाद अब चावल के निर्यात पर भी पाबंदी लगाई है। टुकड़ा चावल का निर्यात रोक दिया गया है और चावल की कुछ अन्य किस्मों के निर्यात पर 20 फीसदी का शुल्क लगा दिया गया है। इसका असर अगले एक-दो महीने में दिखेगा। सरकार की मुख्य चिंता दालों की होनी चाहिए, जिसकी महंगाई दर बहुत ऊंची है और इस वजह से दालों की खपत में कमी आ रही है। सब्जियों की महंगाई सीजनल है, जिसके जल्दी ठीक हो जाने की उम्मीद है। असल में यह सरकार की बड़ी विफलता है, जो उसे फसलों के बारे में सही जानकारी नहीं थी। अप्रैल में प्रधानमंत्री ने कहा था कि भारत दुनिया का पेट भर सकता है। उन्होंने कहा था कि मां अन्नपूर्णा की कृपा से भारत का खाद्यान्न भंडार भरा हुआ है। लेकिन तब सचमुच ऐसा नहीं था। मार्च में अचानक गर्मी बढऩे से रबी की फसल खराब हो चुकी थी और सरकार की गेहूं खरीद पिछले साल के मुकाबले आधी रह गई थी। बाद में उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड सहित कई राज्यों में बारिश अच्छी नहीं हुई तो धान की फसल खराब हुई। पंजाब में एक नए वायरस का अटैक हुआ, जिससे पौधे बड़े नहीं हुए, बौने रह गए, इससे भी धान की फसल का नुकसान हुआ। तब सरकार ने आनन-फानन में निर्यात रोकने का फैसला किया। इससे जाहिर होता है कि सरकार की नीतियां दीर्घकालीन नहीं हैं, उसका मार्केट इंटेलीजेंस का सिस्टम ठीक नहीं है और पैदावार का पूर्वानुमान भी बहुत खराब है।

बहरहाल, निर्यात रोकने से अनाजों के दाम काबू में आएंगे और सब्जियों के दाम भी जल्दी ही कम हो जाएंगे। इसके बावजूद यह तय माना जा रहा है कि अगले महीने सितंबर का जो आंकड़ा आएगा, उसमें भी महंगाई रिजर्व बैंक की सीमा से ऊपर रहेगी। लगातार तीन तिमाही में महंगाई दर रिजर्व बैंक की सुविधाजनक सीमा से ऊपर रहने का संज्ञान लेते हुए केंद्रीय बैंक फिर से ब्याज दर बढ़ाए तो हैरानी नहीं होगी। लेकिन इसका असर विकास दर पर होगा। अगर हर सेक्टर में विकास दर गिरी होती है तो रोजगार का बड़ा संकट सरकार के सामने होगा। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी यानी सीएमआईई ने रोजगार का अगस्त का जो आंकड़ा जारी किया है उसके मुताबिक बेरोजगारी दर 8.28 फीसदी हो गई है। देश में शहरी बेरोजगारी 9.57 फीसदी और ग्रामीण बेरोजगारी 7.68 फीसदी है। पिछले साल अगस्त के बाद से यह सबसे ज्यादा है। हरियाणा जम्मू कश्मीर और राजस्थान में बेरोजगारी की दर 30 फीसदी से ऊपर हो गई है। रोजगार बढ़ाने के लिए विकास दर में तेजी जरूरी है। लेकिन सरकार की मुश्किल यह है कि वह महंगाई रोके या विकास दर बढ़ाए!

दूसरी ओर भारत का विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से खाली हो रहा है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 632 अरब डॉलर से घट कर 553 अरब डॉलर रह गया है। करीब 80 अरब डॉलर की कमी आई है। पिछले हफ्ते ही विदेशी मुद्रा भंडार करीब आठ अरब डॉलर कम हो गया। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जब साढ़े 13 फीसदी विकास दर का डंका बजाया गया था उसी अवधि में भारत का व्यापार घाटा बढ़ कर 69 अरब डॉलर हो गया। जनवरी से मार्च की तिमाही के मुकाबले यह करीब 15 अरब डॉलर ज्यादा है। इस अवधि में भारत ने कुल 121 अरब डॉलर का निर्यात किया और 190 अरब डॉलर का आयात किया। इस तरह 69 अरब डॉलर का व्यापार घाटा हुआ। यह विदेशी मुद्रा भंडार पर बड़ा बोझ है। भारत में विदेशी निवेश पर्याप्त नहीं आ रहा है और एफआईआई शेयर बाजार से पैसा निकाल रहे हैं। ऊपर से रुपए की गिरती कीमत संभालने के लिए रिजर्व बैंक को बाजार में डॉलर निकालना पड़ रहा है। इन सबका मिला जुला असर यह है कि विदेशी मुद्रा भंडार कम हो रहा है। इस तरह देश में महंगाई और बेरोजगारी बढ़ रही है। अनाज के गोदाम खाली हो रहे हैं और विदेशी मुद्रा भंडार भी कम होता जा रहा है।

Aanand Dubey

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