‘माणिक’ है ‘माणा’ फिर भी ‘चमक’ रही फीकी, अब पीएम मोदी से बंधी ‘उम्मीद’
देहारदून। देश के प्रति समर्पण का इतना समृद्ध इतिहास होने के बावजूद इस सरहदी गांव का अपेक्षित विकास नहीं हो पाया। सामिरक दृष्टि से महत्वपूर्ण माणा गांव प्राकृतिक खूबसूरती के लिए भी प्रसिद्ध है। नीलकंठ चोटी, वसुधारा, सरस्वती नदी, माता मूर्ति मंदिर और न जाने कितने पर्यटन आकर्षण के केन्द्र इस गांव के समीप स्थित हैं। मौजूदा समय में यहां 216 परिवार निवास करते हैं। ये लोग अपनी सांस्कृति विरासत और परिधान के संवर्धन के लिए आज भी पूर्ण रूप से संकल्पबद्ध हैं।
आज देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी माणा आ रहे हैं। वह पहले प्रधानमंत्री हैं जो इस सीमांत गांव में जनसभा को सम्बोधित करेंगे। मोदी के आगमन को लेकर गांव के लोग उत्साहित हैं। ‘ऊन की लोई’ और ‘भोजपत्र पर लिखा एक अभिनन्दन पत्र’ वह अपने प्रधानमंत्री को सम्मान स्वरूप प्रदान करेंगे। ग्राम प्रधान पीताम्बर मोलफा का कहना है कि केन्द्र सरकार की ‘वाइब्रेंट विलेज’ योजना से माणा के ग्रामीणों को काफी उम्मीदें हैं।
1- समुद्र तल से 10,248 फीट की ऊंचाई पर स्थित माणा भारतीय सीमा का अंतिम गांव है।
2- पवित्र बदरीनाथ धाम से 3 किमी आगे भारत और तिब्बत की सीमा स्थित इस गांव का नाम भगवान शिव के भक्त मणिभद्र देव के नाम पर पड़ा था।
3- माणा से 24 किमी दूर भारत-चीन सीमा है। 1962 के भारत-चीन युद्ध तक माणा के भोटिया जनजाति निवासी जो मंगोल जाति के वंशज हैं, वे चीनी नागरिक समझे जाते थे। उन्हें भारतीय नागरिकता तक हासिल नहीं थी। सीमा पूरी तरह खुली और असुरक्षित थी। आर्मी तो दूर यहां कोई सुरक्षा बल भी तैनात न थे।
4- तब से 50 किमी दूर जोशीमठ से यहां पैदल आना होता था। यहां के नागरिक बताते हैं कि तब भारत दूर और चीन नजदीक था और चीनी नागरिक खुलेआम यहां तक आते थे। यहां तक कि माणा के निवासी भी चीनी भाषा बोलते और समझते थे।
5- इस सबके बावजूद भारत-चीन युद्ध में यहां के निवासियों ने चीन के दबाव और प्रलोभन को दरकिनार कर भारतीय फौज का साथ दिया और क्षेत्र को भारत में बनाए रखने में भूमिका निभाई।
6- इसके बाद सरकार का ध्यान यहां के नागरिकों और इस क्षेत्र पर गया तथा उन्हें नागरिकता और अन्य अधिकार मिले। बाद में बदरीनाथ और माणा तक सड़क भी पहुंचाई गई और आईटीबीपी की चौकी स्थापित की गई।