अब तो भ्रम से निकलें
अब समय है, जब धनी देशों की आंख खुले। जिस समय दुनिया जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के 27वें सम्मेलन के लिए तैयार हो रही है, ये तथ्य सामने आया है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण सबसे ज्यादा गर्म यूरोप का वातावरण हुआ है।
अगर धनी देश इस भ्रम में थे कि अपनी समृद्धि और व्यवस्थागत कौशल के कारण वे जलवायु परिवर्तन की मार से बचे रहेंगे, तो अब उनकी आंख खुल जानी चाहिए। जिस समय दुनिया जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के 27वें सम्मेलन के लिए तैयार हो रही है, ये तथ्य सामने आया है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण सबसे ज्यादा गर्म यूरोप का वातावरण हुआ है। साफ है कि जलवायु परिवर्तन की मार देर-सबेर सब पर पड़ेगी। ताजा रिपोर्ट गैर सरकारी संस्था- विश्व मौसम विज्ञान संस्थान (डब्लूएमओ) ने जारी की है। उसके मुताबिक गुजरे 30 साल में पृथ्वी के दूसरे भूभागों की तुलना में यूरोप करीब दोगुनी तेजी से गर्म हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक इस गर्मी की वजह से यूरोप भीषण सूख भी झेल रहा है और तेजी से आल्प्स के ग्लेशियर भी खो रहा है। यह गर्मी भूमध्यसागर को भी तपा रही है।
यूरोप गर्म होती दुनिया की लाइव तस्वीर पेश कर रहा है और बता रहा है कि अच्छी तरह तैयार समाज भी मौसमी अति की घटनाओं से सुरक्षित नहीं हैं। गौरतलब है कि 1991 से 2021 के बीच यूरोप का औसत तापमान हर दशक में 0.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ा। इसी समयावधि में बाकी दुनिया का तापमान हर दसवें साल में 0.2 डिग्री सेल्सियस के औसत से बढ़ा। 2021 में जलवायु परिवर्तन की वजह से यूरोप में इतनी मौसमी आपदाएं आईं कि 50 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। ताजा रिपोर्ट ने बताया है कि यूरोप का ज्यादातर इलाका उप-आर्कटिक और आर्कटिक क्षेत्रों से मिलकर बना है। इस वजह से गर्मियों में यूरोप के ऊपर कम बादल मंडरा रहे हैं, जिससे सूरज की सीधी किरणें सतह पर पहुंचकर तपिश पैदा कर रही हैं। कुछ वैज्ञानिक यूरोप को हीटवेब का हॉटस्पॉट कह रहे हैं। छह नवंबर से मिस्र एक शर्म अल शेख में विश्व जलवायु सम्मेलन कॉप-27 शुरू हो रहा है। अगर धनी देशों की आंख कुल गई हो, तो उनके नेता वे वहां कुछ ऐसे फैसले ले सकते हैं, जिससे धरती के तापमान में वृद्धि को रोका जा सकेगा। ऐसे कदम उठाए गए, तो सारी दुनिया सुरक्षित होगी।