श्रीलंका में राजनैतिक संकट
अजय दीक्षित
श्रीलंका की अर्थव्यवस्था इस समय तबाही के दौर से गुजर रही है। इस बड़े आर्थिक संकट के कारण श्रीलंका में जहां एक तरफ खाने-पीने की चीजों की भी कमी हो गई है, वहीं दूसरी तरफ लोगों के विरोध प्रदर्शन के चलते राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे भी अपना आवास छोडक़र भाग चुके हैं । साथ ही प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने भी औपचारिक रूप से अपना इस्तीफा दे दिया है । इस तबाही के एक नहीं, अनेक कारण हैं । श्रीलंका की कुल अर्थव्यवस्था में उसके टूरिज्म सेक्टर का योगदान 10 प्रतिशत था, लेकिन कोरोना महामारी के चलते लगी पाबन्दियों ने श्रीलंका के टूरिज्म सेक्टर को बर्बाद कर दिया । इससे श्रीलंका को काफी नुकसान हुआ । दूसरा, श्रीलंका की सरकार ने ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए एक दम से फर्टिलाइजर्स बैन करके 100 फीसदी ऑर्गेनिक खेती करने का निर्णय लिया । इससे श्रीलंका में कृषि प्रोडक्शन आधा रह गया, जिस कारण श्रीलंका में चावल-चीनी सहित अन्य चीजों की भारी किल्लत हो गई ।
तीसरा, श्रीलंका ने पिछले कुछ समय में भारत, जापान, चीन सहित अन्य देशों से भारी कर्ज लिया, लेकिन इस कर्ज का सही उपयोग नहीं किया । भारी-भरकम कर्ज के चलते श्रीलंका की अर्थव्यवस्था पर ब्याज और किस्त का भारी दबाव पड़ा । इस कारण श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भण्डार कम हो गया और वह जरूरत की चीजों का भी आयात नहीं कर पा रहा है । चौथा, श्रीलंका की सरकार ने साल 2019 में लोगों को राहत देते हुये टैक्स में कटौती की थी । इस कारण सरकार की आय में 30 प्रतिशत की गिरावट आई, जिससे देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई । पांचवां, श्रीलंका में पिछले करीब 2 दशकों से राजपक्षे परिवार का दबदबा रहा है । राजपक्षे परिवार पर आरोप है कि इन्होंने विदेशों से लिये गये कर्ज को देश के लिए इस्तेमाल करने की बजाय अपने निजी हित के लिए इस्तेमाल किया । श्रीलंका में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री, सिंचाई मंत्री, युवा एवं खेल मंत्री, सभी राजपक्षे परिवार से ही आते हैं । इन सभी पर भ्रष्टाचार करने के आरोप लग रहे हैं। आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका के लोग अब आक्रामक हो चुके हैं ।
कुछ दिन पहले करीब हजारों लोगों ने राष्ट्रपति आवास और प्रधानमंत्री के घर को निशाना बनाया । वहां के स्वीमिंग पूल में नहाए, खाना खाते हुए सेल्फी ली, इन तस्वीरों को पूरी दुनिया ने देखा । मई के महीने में प्रधानमंत्री का पदभार संभालने वाले रानिल विक्रमसिंघे ने कहा था कि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था बुरी तरह कर्ज के बोझ में दब गई है । इस समय श्रीलंका अब अपने पड़ोसी देश भारत, चीन और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से मदद की गुहार लगा रहा है । इस संकट को न संभाल पाने की वजह से श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे दोनों ने इस्तीफा देने का फैसला कर लिया है । जानकारी के मुताबिक 13 जुलाई को राष्ट्रपति अपना इस्तीफा देंगे । श्रीलंका की हालत इतनी बुरी हो चुकी है कि लोगों को दो वक्त की रोटी नसीब नहीं हो रही । ईंधन के लिए कई घण्टों तक कतार में खड़ा होना पड़ता है ।
सरकार पर करीब 51 बिलियन डॉलर का कर्ज है । श्रीलंका इसका ब्याज चुकाने में असमर्थ है, मूलधन की बात तो छोड़ ही दी जाए। पर्यटन जो अर्थव्यवस्था के विकास में एक अहम भूमिका निभाता है, वह भी 2019 में हुये आतंकी हमले के बाद सुरक्षा की चिन्ता और कोरोना की वजह से धराशायी हो चुका है । इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक अर्थशास्त्रियों का कहना है कि संकट की वजह सालों का कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार है । जनता का सारा आक्रोश राष्ट्रपति राजपक्षे और उनके भाई, पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे पर फूटा । बाद में मई में जब आक्रोश थमने का नाम नहीं ले रहा था तो इस्तीफा दे दिया गया था । हालात कई सालों से खराब हो रहे थे। 2019 में चर्चा और होटलों में – ईस्टर आत्मघाती बम विस्फोटों में करीब 260 से ज्यादा लोगों ने जान गंवाई । इस समय दुनिया के कई देशों की अर्थव्यवस्था डूबने के कगार पर है ।
चीन के कर्ज ने कई देशों की अर्थव्यवस्था को बरी तरह से अपने शिकंजे में दबोच लिया है । ऐसे में वहां की स्थिति भी श्रीलंका जैसी दुखद और गम्भीर हो सकती है । ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के कई उभरते बाजारों और विकासशील देशों की इकॉनोमी पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है । इसकी वजह कुछ और नहीं बल्कि इन देशों का विदेशी कर्ज न चुका पाना है । इसी कर्ज की वजह से श्रीलंका तो लम्बे समय से आर्थिक अस्थिरता से ग्रस्त रहा है । अरबों-खरबों रुपयों की देनदारी के संकट से गुजर रहे देशों में श्रीलंका पहला ऐसा देश था जिसने इस साल 2022 में अपने विदेशी बॉण्डधारकों का भुगतान बन्द कर दिया था । ये फैसला इसलिए हुआ होगा क्योंकि यहां के राजनेताओं ने देश में खाने पीने के सामान की कमी के साथ लगातार गहरा रहे ईंधन के संकट का अंदाजा लगा लिया होगा । इस वजह से श्रीलंका के लोगों में देश की सरकार के प्रति आक्रोश लगातार बढ़ता गया ।
अदृश्य खतरे का सामना कर रहे ये वो देश हैं जिन्हें ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में ऐसा डिफाल्टर माना गया है जो अपना कर्ज चुकाने की स्थिति में नहीं हैं। इस सूची में अल सल्वाडोर, घाना, मिस्र, ट्यूनीशिया, केन्या और पाकिस्तान जैसे कई देश भी शामिल हैं । श्रीलंका के आर्थिक घटनाक्रम को हमें संजीदगी से लेने की जरूरत है । हमें हर तरह के अनुत्पादक खर्चों पर नियंत्रण करना होगा और पेशेवर प्रबंधन घरेलु स्तर पर आम आदमी को दिखावे पर पैसे का बहना रोकना होगा । हमें अपनी लोकल और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना होगा । ज्यादा कर्ज लेकर देसी घी पीने की सोच हमारे राज्यों के लिए भी श्रीलंका जैसा आर्थिक संकट पैदा कर सकती है ।