ब्लॉग

भारत क्या पाकिस्तान की मदद करे?

वेद प्रताप वैदिक
श्रीलंका के प्रधानमंत्री रनिल विक्रमसिंघ और मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह ने भारत के प्रति जिन शब्दों में आभार व्यक्त किया है, वैसे कर्णप्रिय शब्द किसी पड़ौसी देश के नेता शायद ही कभी बोलते हैं। क्या ही अच्छा हो कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और नेपाल के शीर्ष नेता भी भारत के लिए वैसे ही शब्दों का प्रयोग करें। यह बात मैंने एक भाषण में कही तो कुछ श्रोताओं ने मुझसे पूछा कि क्या पाकिस्तान भी कभी भारत के लिए इतने आदरपूर्ण शब्दों का इस्तेमाल कर सकता है?

श्रीलंका और मालदीव, ये दोनों हमारे पड़ौसी देश भयंकर आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं। ऐसे में भारत ने इन दोनों देशों को अनाजों, दवाइयों और डॉलरों से पाट दिया है। ये दोनों देश भारत की मदद के बिना अराजकता के दौर में प्रवेश करने वाले ही थे। श्रीलंका के राष्ट्रपति ने अपनी संसद को दिए पहले संबोधन में भारत का नाम लेकर कहा कि भारत ने श्रीलंका को जीवन-दान किया है। भारत ने श्रीलंका को 4 बिलियन डालर तथा अन्य कही सहूलियतें इधर दी हैं जबकि चीन ने भारत के मुकाबले आधी मदद भी नहीं की है और वह श्रीलंका को अपना सामरिक अड्डा बनाने पर तुला हुआ है।

इसी तरह पिछले कुछ वर्षों में मालदीव के कुछ नेताओं को अपना बगलबच्चा बनाकर चीन ने उसके सामने कई चूसनियां लटका दी थीं लेकिन इसी हफ्ते मालदीव के राष्ट्रपति सोलेह की भारत-यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच छह समझौतों पर दस्तखत हुए। सोलिह ने कोरोना-काल में भारत द्वारा भेजी गई दवाइयों के लिए भारत के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने हिंद महासागर क्षेत्र में आतंकवाद और राष्ट्रों के उस पार से होने वाले अपराधों के विरुद्ध भारत के साथ खुला सहयोग करने की बात कही है। बिना बोले ही उन्होंने सब कुछ कह दिया है।

भारत की मदद से सैकड़ों करोड़ रु. के कई निर्माण-कार्यों की योजना भी बनी है। भारत ने मालदीव को अनेक सामरिक संसाधन भी भेंट किए हैं। अब प्रश्न यही है कि क्या भारत ऐसे ही लाभदायक काम पाकिस्तान के लिए भी कर सकता है? किसी से भी आप यह प्रश्न पूछें तो उसका प्रश्न यही होगा कि आपका दिमाग तो ठीक है? पाकिस्तान का बस चले तो वह भारत का ही समूल नाश कर दे।

यह बात मोटे तौर पर ठीक लगती है लेकिन अभी-अभी अल-क़ायदा के सरगना जवाहिरी के खात्मे में पाकिस्तान का जो सक्रिय सहयोग रहा और उसामा बिन लादेन के बारे में भी उसकी नीति यही रही, इससे क्या सिद्ध होता है? यही कि मजबूरी का नाम महात्मा गांधी! जब आसिफ जऱदारी राष्ट्रपति थे तो मैंने फोन करके पूछा कि आपके भयंकर आर्थिक संकट में क्या हम आपको कुछ मदद दें तो आप स्वीकार कर लेंगे? उससे आपकी सीट को खतरा तो नहीं हो जाएगा?
उनकी तरफ से हर्ष और आश्चर्य दोनों व्यक्त किए गए लेकिन हमारे प्रधानमंत्री मनमोहनसिंहजी की हिम्मत नहीं पड़ी। यदि नरेंद्र मोदी इस समय शाहबाज शरीफ को वैसा ही इशारा करके देखें तो शायद कोई चमत्कार हो जाए। भारत-पाक संबंधों में अपूर्व सुधार के द्वार खुल सकते हैं।

Aanand Dubey

superbharatnews@gmail.com, Mobile No. +91 7895558600, 7505953573

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *