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तो सारे टंटे सुलझ गए!

भारत-चीन की सेनाओं के डिसएंगेजमेंट का परिणाम यह हुआ है कि शंघाई सहयोग संगठन की शिखर बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी सुनिश्चित हो गई है।

भारत सरकार के सूत्रों ने मीडिया को ब्रीफ किया है कि भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा पर मई 2020 में जो भी विवाद खड़े हुए थे, उनको अब हल कर लिया गया है। ये बात गोगरा हॉट स्प्रिंग स्थित पेट्रोलिंग प्वाइंट 15 के पास आमने-सामने खड़ी दोनों देशों की सेनाओं के वापस लौटने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद कही गई। जबकि मीडिया रिपोर्टों में ध्यान दिलाया गया है कि देपसांग और देमचोक क्षेत्र में अभी चीन ने भारतीय बलों को उन स्थलों तक गश्त लगाने से रोक रखा है, जहां पहले भारतीय टुकडिय़ां जाती थीँ। कांग्रेस नेता राहुल गांधी का दावा है कि अभी भी भारत का लगभग 1000 वर्ग किलोमीटर वह इलाका चीन के कब्जे में है, जहां उसकी सेना 2020 के अप्रैल- मई में घुस आई थी। वैसे तथ्य यह है कि भारत सरकार ने यह आरोप कभी नहीं लगाया कि तब चीनी सेना ने भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की थी। बल्कि खुद प्रधानमंत्री ने कहा था कि कोई नहीं घुसा है। इस तरह भारत सरकार का कथानक अपनी लाइन पर ही है।

ताजा घटनाक्रम का परिणाम यह हुआ है कि शंघाई सहयोग संगठन की समरकंद में गुरुवार से होने वाली शिखर बैठक के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की अनुकूल पृष्ठभूमि बन गई है। वैसे मुलाकात हो या नहीं, यह जरूर कहा जाएगा कि डिसएंजमेंट की ताजा घटना से चीन मोदी की समरकंद में उपस्थिति सुनिश्चित कराने में सफल हो गए हैँ। चीन इस समय रूस के साथ मिल कर अमेरिकी धुरी के खिलाफ वैकल्पिक धुरी तैयार करने में जुटा हुआ है। वैसे में किसी देश को कुछ टैक्टिकल बढ़त देना उसके नजरिए से फायदे का ही सौदा है। भारत जैसे बड़े और महत्त्वपूर्ण देश के प्रधानमंत्री की समरकंद में मौजूदगी का अपना खास महत्त्व है। इससे संदेश जाएगा कि विकासशील देश पश्चिम के खिलाफ लामबंद हो गए हैँ। उधर प्रधानमंत्री के समर्थकों को यह टॉकिंग प्वाइंट मिला है कि आखिरकार मोदी ने चीन को झुका दिया है। अंतर सिर्फ यह है कि शी का टैक्टिकल कदम चीन के हित में है, जबकि मोदी समर्थकों को मिले तर्क से भारत का कितना भला होगा, इसे आसानी से समझा जा सकता है।

Aanand Dubey / Sanjay Dhiman

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