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फैलता जा रहा है संकट

विश्व पर मंडरा रहे आर्थिक संकट के संदर्भ में यह टिप्पणी गौरतलब है कि जब झटके लगते हैं, तो जरूरी नहीं है कि हमेशा गंभीर भूकंप आए। लेकिन बिना झटकों के कभी ऐसे भूकंप नहीं आते।

महंगाई, ऊंची ब्याज दर, और कर्ज संकट से पहले दुनिया के कमजोर देश प्रभावित हुए। फिर कहा गया कि उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों पर भी खतरा मंडरा रहा है। इसी बीच बात अब धनी देशों तक पहुंच गई है। उसकी पहली मिसाल ब्रिटेन में देखने को मिली है।  ब्रिटेन के बॉन्ड बाजार में जैसी अफरातफरी दिखी है, उसके बाद अर्थशास्त्रियों ने उचित ही यह चेतावनी दी है कि ये झटके दूसरे विकसित देशों तक पहुंच सकते हैँ। इस बीच स्विट्जरलैंड के बैंक क्रेडिट सुइसे के दिवालिया होने की अटकलों से चिंता और बढ़ गई है। आशंका यह है कि अगर ये बैंक फेल हुआ, तो उसका लीमैन ब्रदर्स जैसा असर देखने को मिल सकता है। 2007-08 जैसी मंदी की शुरुआत अमेरिकी इन्वेस्टमेंट बैंक लीमैन ब्रदर्स के ढहने के साथ ही हुई थी। ब्रिटेन में संकट का फौरी कारण नई प्रधानमंत्री ली ट्रस की नीतियां बनी हैं। उन्होंने पिछले हफ्ते टैक्स दरों में भारी कटौती की। इसका लाभ ज्यादातर धनी तबकों को मिलेगा।

लेकिन ट्रस सरकार की दलील थी कि इससे आर्थिक विकास दर को गति मिलेगी। मगर उलटा हुआ। ब्रिटिश सरकार के बॉन्ड्स और ब्रिटिश मुद्रा पाउंड की कीमतों में तेजी से गिरावट आई। बैंक ऑफ इंग्लैंड (ब्रिटेन के सेंट्रल बैंक) ने तब सरकारी बॉन्ड्स को खरीदने का फैसला कर बॉन्ड बाजार को संभाला। लेकिन साधारण भाषा में इसका अर्थ यह है कि बैंक नोट की छपाई कर सरकार को देगा। इससे बेशक मुद्रास्फीति और बढ़ेगी। बहरहाल, बात शायद यहीं तक ना रहे। अमेरिका मोटे तौर पर अब गहरे संकट से बचा हुआ है। लेकिन महंगाई वहां भी बेकाबू है। इसलिए माना जा रहा है कि वह भी संकट के असर से बचा नहीं रह पाएगा। इसलिए उचित ही अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने कहा है कि ब्रिटेन अभी आगाह करने वाली चिडिय़ा की भूमिका निभा रहा है। स्थिति कितनी बुरी है, इसका अनुमान लगाना अभी मुश्किल है। मगर अमेरिका के पूर्व वित्त मंत्री लैरी समर्स की ये टिप्पणी गौरतलब है- ‘जब झटके लगते हैं, तो जरूरी नहीं है कि हमेशा गंभीर भूकंप आए। लेकिन बिना झटकों के कभी ऐसे भूकंप नहीं आते। फिलहाल, झटके जरूर महसूस हो रहे हैं।’

Aanand Dubey / Sanjay Dhiman

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