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पोस्टकार्ड और संभावनाएं

अनिता करवाल(सचिव स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग,शिक्षा मंत्रालय,भारत सरकार)

जब आप अनिश्चितता को स्वीकार करते हैं, लेकिन एक खोजपूर्ण और रचनात्मक प्रक्रिया के माध्यम से आप विभिन्न संभावनाओं के बारे में सोचते हैं, यहां तक कि किसी अनजान भविष्य की संभावनाओं का अनुमान लगाते हैं व भविष्यवाणी करते हैं, तो आपकी सोच को  भविष्य की सोच कहा जा सकता है। स्कूली शिक्षा प्रणाली, जिसकी आलोचना कभी-कभी रटने पर आधारित प्रणाली के रूप में की जाती है, के छात्रों से संभवत: वर्तमान से आगे तक देखने और अनजान भविष्य या अनदेखे अतीत पर अपने विचार देने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। परन्तु, देश के बच्चों ने ऐसी सभी धारणाओं को गलत साबित किया है।

स्वतंत्रता के 75वें वर्ष पर आयोजित एक कार्यक्रम में, तीन विभागों – स्कूल शिक्षा, डाक और संस्कृति- के द्वारा एक संयुक्त पहल के तहत देश के कोने-कोने से कक्षा 4 से 12 तक के बच्चों को, दो विषयों- हमारे स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायक और 2047 के भारत के लिए मेरा विजऩ- पर माननीय प्रधानमंत्री को पोस्टकार्ड लिखने के लिए प्रोत्साहित किया गया।

एक अनुमान के मुताबिक, भारत में लगभग 50 करोड़ पोस्टकार्ड प्रतिवर्ष लिखे जाते हैं। इनमें से एक करोड़ से अधिक पोस्टकार्ड इस साल दिसंबर-जनवरी में बच्चों द्वारा एक ही पते पर भेजे गए थे- प्रधानमंत्री के पते पर! बच्चों के इस अपार उत्साह के लिए माननीय प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में उन्हें हार्दिक धन्यवाद दिया और कुछ बच्चों के पोस्टकार्ड को पढक़र सुनाते हुए उनके अर्थ व मूलभाव पर चर्चा की।

मैं भी यहाँ पर कुछ उन मुख्य बातों को प्रस्तुत करने का प्रयास कर रही हूँ, जिन्हें प्रधानमंत्री ने बच्चों की मन की बात का नाम दिया है। बच्चों ने हमारी आजादी के गुमनाम नायकों के योगदान और बलिदान के बारे में बड़े गर्व के साथ विस्तार से चर्चा की है। एक बच्चे ने लिखा है,एक भारतीय क्रांतिकारी,मातंगिनी हाजरा ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया और नमक कानून को तोडऩे पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। हालांकि उन्होंने औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए वे कई महिलाओं की प्रेरणा बनीं। एक अन्य छात्र कि हम धीरे-धीरे अपने नायकों जैसे तारा रानी, तिरोट सिंह, दुर्गाबाई देशमुख आदि को भूल रहे हैं, इसलिए हमें इन गुमनाम नायकों को याद करने के लिए हर साल राष्ट्र का एक दिन समर्पित करना चाहिए।

एक छात्रा ने अपना पूरा पोस्टकार्ड आजाद हिंद फौज की कैप्टन लक्ष्मी सहगल को समर्पित किया है। दुर्गाबाई देशमुख, बिरसा मुंडा, पिंगली वेंकैया, नानी बाला देवी, कुंवर प्रताप सिंह बारहठ, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, मदनलाल ढींगरा, मुनिदेव त्यागी, विश्वनाथ दास, भीकाजी कामा और हीराजी गोमाजी पाटिल के बारे में कई बच्चों ने लिखा है। एक छात्र ने भीमा बाई होल्कर की भूमिका को विस्तार से बताया है और कहा है कि वे इस बात की जीती-जागती परिभाषा थीं कि  एक व्यक्ति अपने विचार के लिए अपनी जान दे सकता है, लेकिन उसका विचार उनकी मृत्यु के बाद एक हजार लोगों में अवतरित होगा ।

Aanand Dubey

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