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ममता, केजरीवाल क्या करें?

हरिशंकर व्यास
ममता बनर्जी सदमे में हैं। अरविंद केजरीवाल भी परेशान होंगे। कहने को भले उन्होंने कहा हो कि- तुम लोग सावरकर की औलाद हो, जिन्होंने अंग्रेजों से माफी मांगी थी, हम भगत सिंह की औलाद हैं। ज्हमें जेल और फांसी के फंदे से डर नहीं लगता। हम कई बार जेल होकर आ गए हैं। मगर पहले सत्येंद्र जैन और अब मनीष सिसोदिया पर लटकी तलवार ने केजरीवाल को मन ही मन झिंझोड़ा होगा। ममता और केजरीवाल दोनों की ईमानदारी पर जनता में सवाल पैदा कर दिए हैं। ममता बनर्जी का संकट इसलिए बड़ा है क्योंकि सरकार में नंबर दो हैसियत के पार्थ चटर्जी की करीबी अर्पिता मुख्रर्जी के घर पर छापे में मिली करोड़ों की नकदी के फोटो और वीडियो को बंगाल के भद्र और गरीब जनता भुला नहीं सकती। खुद ममता बनर्जी को नकदी का अंबार देख कर सांप सूंघ गया होगा। उन्होंने सदमे में चुप्पी धार ली और आखिरकार पार्थ चटर्जी को हटाया।

मैंने ममता बनर्जी को सांप सूंघने का जुमला इसलिए इस्तेमाल किया क्योंकि ममता बनर्जी का चरित्र पैसे का भूखा और भ्रष्टाचार में तर-बतर रहने का नहीं है। कुछ भी हो ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल वैसे बेईमान नहीं हैं, जैसा भारत का आम राजनेता है। मेरा अरविंद केजरीवाल से कोई लगाव नहीं है। उलटे उनके द्वारा बाकी सबको बेईमान बताने की राजनीति के खिलाफ लिखा है। दिल्ली सरकार याकि केजरीवाल और मनीष सिसोदिया से ‘नया इंडिया’ को एक पैसे का विज्ञापन नहीं मिला है। बावजूद इसके एनजीओ के वक्त (मैंने ही उन दिनों आरटीआई एक्टिविस्ट केजरीवाल के नाते उनका ‘सेंट्रल हॉल’ में पहला इंटरव्यू किया था।) केजरीवाल की तासीर को जो समझा है तो उसमें मानता हूं कि निजी तौर पर वे पैसे की भूखी प्रवृत्ति के नहीं हैं और यहीं बात भविष्य की पूंजी है। मेरी यहीं धारणा ममता बनर्जी को लेकर है। इसलिए दोनों से भविष्य में नरेंद्र मोदी के आगे खम ठोक चुनौती की संभावना थी।

दोनों को मोदी सरकार और उनकी ईडी ने पंक्चर कर दिया है। दोनों पर आगे और गाज गिरेगी। मनीष सिसोदिया ही नहीं, बल्कि उनके दिल्ली, पंजाब के मंत्रियों पर पल-पल की नजर रखी जा रही होगी। ईडी को क्योंकि सुप्रीम कोर्ट से अब पूरी छूट मिल गई है तो सन् 2024 के लोकसभा चुनाव में जहां-जहां नरेंद्र मोदी को जो-जो चुनावी चुनौती देता हुआ होगा उस पर छापे ही छापे पडऩे हैं। अगले डेढ़ साल भारत ईडी के छापों का देश होगा और स्टालिन हों या केसीआर या कुमारस्वामी, केरल के लेफ्ट मोर्चे के नेता, पंजाब के मंत्री, हेमंत सोरेन सरकार के लोग या कांग्रेसी नेता और मुख्यमंत्री सभी छापों की बाढ़ में डूबे हुए होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने ईडी को लाइसेंस दिया है जो वह मोदी सरकार के लिए राजनीतिक ब्रह्मास्त्र के रूप में काम करे।

खैर, यह 75 वर्षों में व्यवस्था और तंत्र के पिंजरे में लोगों को बांधे रखने की हिंदू नियति का सहज विकास है। कोई कुछ नहीं कर सकता। आखिर ईडी को कांग्रेस-यूपीए सरकार ने ही तो इतना ताकतवर बनाया था।

बहरहाल, मुद्दा है कि ममता और केजरीवाल क्या करें? यदि दो-चार मंत्रियों पर ईडी की छापेमारी के ठप्पे से कालिख पुत जाए और उस जैसे बहानों पर केंद्र सरकार दिल्ली विधानसभा के कानून को ही खत्म करके केजरीवाल को सडक़ पर ला दे तो वे क्या करेंगे? क्या गुजरात में धरना दे कर गुजरात विधानसभा चुनाव जीते लेंगे? या हरियाणा के अगले विधानसभा चुनाव में जीत कर वहां के मुख्यमंत्री बन जाएंगे? क्या 2024 तक पंजाब सरकार को बचाए रख सकेंगे?

ऐसा अस्तित्व का संकट सन् 2024 तक ममता बनर्जी पर नहीं होगा। उनके विधायकों के बड़ी संख्या में दलबदल करने याकि उन्हें उद्धव ठाकरे की तरह घर बैठा देने, तृणमूल कांग्रेस को खत्म कर देने जैसी संभावना फिलहाल नहीं लगती है। मगर हां, ममता और उनके विधायक अब सहमे रहने हैं। त्रिपुरा जैसे विधानसभा चुनाव में ममता का मकसद चुनाव जीतना नहीं होगा, बल्कि कांग्रेस-लेफ्ट मोर्चे (यदि बना) के वोट काटने का रहेगा।

असली सवाल है कि ममता और केजरीवाल क्या सरकार बचाने के लिए मोदी-शाह की राजनीति के आगे वैसे ही समर्पण किए हुए नहीं होंगे, जैसे यूपी में मायावती का रोल माना गया? सन् 2024 की भाजपा रणनीति का कोर फोकस इस बात पर है कि सभी विपक्षी पार्टियों के नेता ऐसे फंसे रहें कि उनमें न चुनाव लडऩे का हौसला रहे और न साझा मोर्चे याकि साझा रणनीति का ख्याल बने। सोचें, ममता और सत्येंद्र जैन, मनीष या सोनिया और राहुल गांधी पर ईडी की मार में क्या कहीं विपक्ष में एक-दूसरे की मदद, समर्थन जैसी कोई बात सुनी? मीडिया में भी इन पर समर्थन-सहानुभूति में कोई लिखता हुआ नहीं मिला, मनीष सिसोदिया पर हमारे डॉ. वेदप्रताप वैदिक को छोड़ कर!

Aanand Dubey

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